अब जचता नही
जो छाप छोड़ा था इस देव ए दिल पर
वो तस्वीर तेरी इस दिल वो जहन से अभी मिटी नही
अब तो मुस्कुरा लेते हैं बस सबसे छुपकर देख तस्वीर को तेरी 🦋
बसते हो आज भी इस दिल ए देव में पहले की तरह
ओये "🦋" अब तो सिर्फ़ तुम्हारी वो हँसी ही नही
तुम्हारा वो साथ वो हर बात सब कुछ है अब बहुत ही अखरता
क्या पता क्या होगा•••नही अब कुछ ख़बर "देव"
बस ये "देव" ए नज़र तेरी बिजली सी हँसी को
एक नज़र देखने को तरसता है
हाँ सच है
तेरे बिन कुछ भी अब जचता नही-
तुम्हें समझ ही नही पा रहा हूँ मै
क्या तुम मुझे समझ सकते हो
हाँ सच में हैरान हूँ मै
तुम्हें ना समझ पाने से परेशान हूँ मै
क्या करूँ छोड़ दूँ ये दुनियाँ मै
या फिर तुम्हें छोड़कर सब रिश्ता तोड़ दूँ मै
हाँ सच में हैरान हूँ मै
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दिल क्या करे जब किसी को किसी से प्यार हो जाये!
तमन्ना मचलती है कहने को है बहुत
बस दिल ए जिगर में ही छुपाये बैठें हैं
चाहत है हाँथो में मेरे-तेरे हाँथ थमाने का
बस दिमाग़ ए आशियाना बनाये बैठें हैं
"देव" उनकी नज़रों को पढ़ना आसान नही इतना
वो तो नज़रों को अपने-जुल्फों से छुपाये बैठें हैं-
यूँ छुप-छुपकर रहता है क्यूँ
"देव" किसकी एक नज़र पाने को
दिन-रात तरसता रहता है वो
क्या ज़रा सा भी है उन्हें भी खबर
कि यूँ छुपकर-छुपकर बादलों में
आख़िर कौन है जो सिसकता रहता है
"यूँ चाँद भटकता क्यूँ रहता है"-
जहाँ कुछ भी ना बचा हो वहाँ फ़िर भी
हम अपने फटे हुए आरज़ू ए उम्मीद को सी रहे हैं
जिन्हें हमने दिये थे खुशियों के मीठे पल
"देव" उन्हीं के लिए हम गम ए जुदाई के ज़हर पी रहें हैं
हम भी यहीं हैं वो भी यहीं हैं ये शहर भी है
फ़कत गम बस इतना है कि वो अब हमारे ना रहे
"बस यही कश्मकश में जी रहें हैं"
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जैसे....
रेगिस्थान के उष्णता में बिन पानी की प्यास हो
बंजर जमीन पर बिन वृक्षों की छावँ की आस हो
दर्द ए दिल है फकत "देव" वो ना दिखने वाला घाव हो
तू ना सही तेरे इश्क़ ए मिलन की दिल ए देव में भाव हो
तु तो साथ नही मगर "बारिशों में तेरी याद" दिल ए देव के पास हो
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तुम शहर की भारी भरकम सड़क की भीड़ सी लगती हो
जिसे "देव" गाँव की सन्नाटे वाली पगडंडी की तरह ढूँढता है
तुम कितना भी बन जाओ विशाल वट भी
मैं तो तुम्हें आगन की तुलसी ही समझता हूँ
तुम भले बने रहो चाहे हरियाली पहाड़ों की
मैं तो बस तुम्हें खेतों-खलियानो में फ़ैली हुई
ख़ुशबू सा महसूस करता हूँ पसंद करता हूँ
आज तुम बारिस बनके आयी तो क्या
गम नही बरसने का बरसो बन के बर्खा
फ़कत बस इतना ही समझ लेना
ये चाह राह ए जमीं की तुझसे ही रही है
"तेरी हर एक बूंद" इसी मिट्टी में मेरे आकर मिलेगी-
तुम शहर की भारी भरकम सड़क की भीड़ सी लगती हो
जिसे "देव" गाँव की सन्नाटे वाली पगडंडी की तरह ढूँढता है
तुम कितना भी बन जाओ विशाल वट भी
मैं तो तुम्हें आगन की तुलसी ही समझता हूँ
तुम भले बने रहो चाहे हरियाली पहाड़ों की
मैं तो बस तुम्हें खेतों-खलियानो में फ़ैली हुई
ख़ुशबू सा महसूस करता हूँ पसंद करता हूँ
आज तुम बारिस बनके आयी तो क्या
गम नही बरसने का बरसो बन के बर्खा
फ़कत बस इतना ही समझ लेना
ये चाह राह ए जमीं की तुझसे ही रही है
"तेरी हर एक बूंद" इसी मिट्टी में मेरे आकर मिलेगी-
ज़रा सा इस अपने दीवाने ए "देव" पर रहम कर दो
हैं कुछ आरज़ू ए दिल बस इतना सा करम कर दो
ये तुम्हारे लब जैसे आपस में दो लिपटी हुई कलियाँ हो
इन लबों से मुस्कुराकर बस एक मुलाक़ात ए हामी भर दो
!..❤...ओये...¶...सुनो ना...❤..!
मुझपे बस इतना सा करम कर दो-
वक़्त अच्छा हो या बुरा "देव"
गम ना-कर वो गुज़र ही जाता है
इस बेदर्द ए दुनियाँ में "देव"
खुद के सिवा दूजा नही यहाँ कोई
मतलब ए फरोस लोग है इस जहाँ में
निकाला आज वक़्त खुद के लिए
आज खुद-खुद से मिलने गया
एहसास ए दिल हुआ बाद में
पल भर का जो सुकूँ होता है
वो गैरों के साथ से बेहतर होता है
गैरों के समझ से परे अपनों का एहसास होता है
अब "देव" देख जिसे जलना है जले गम नही हमें
वक़्त अच्छा हो या बुरा "देव"
गम ना-कर वो गुज़र ही जाता है
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