मुवाक़िल्ल न हुए गर तुम मेरे जज़्बात के,
किसी और से वफाई क्या ख़ाक करोगे...-
मेरी याद मुझसे ज्यादा तुझे क्यो आने लगी,
तेरी फिक्र तुझसे ज्यादा मुझे क्यों सताने लगी,
मासूम तू है या है ये वक़्त की जरूरत,
मशरूफ़ मैं हूँ या तू है खूबसूरत,
फितरत तेरी, कुछ राज़ खुलकर बताने लगी
मेरी याद मुझसे ज्यादा तुझे क्यों आने लगी,
मुवक्किल मैं हूँ या अंदाज़ कातिल है तेरा,
बिन तेरे मेरे सनम अब गुज़रा कहाँ मेरा,
फरियाद सुनले जिगर की ओ मेरी हमराह,
हर डगर हर पहर हम होंगे तेरे हमराज़,
हमारे रिश्ते में अब फितूरी आने लगी,
मेरी याद मुझसे ज्यादा तुझे क्यों आने लगी।
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याद नही हो तो याद किया करो,
मेरे दोस्त ये ज़िन्दगी खुलके जिया करो,
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युवा
दुनिया से बेखबर, सच्चाई सुन बेसबर
मालिक ही जाने इनका क्या मनसूबा है,
वाह तू युवा है, हाँ तू युवा है,
शराब के आदि, हवस के आदि,
ना किसी काम के, बने है बग़दादी
सोच इनकी छोटी, बस पैसो की बर्बादी,
ना भविष्य की समझ, ना किसी से प्यार,
अमानवीय इनका स्वरूप, गज़ब है यार,
परमात्मा ही जाने इनका क्या मनसूबा है,
वाह तू युवा है, हाँ तू युवा है,
ना किसी से प्रेम, ना ही दुलार,
ना परिवार की चिंता, बस लडकिया हो हज़ार।
इनकी सोच मतलबी, ज़ज़्बात मतलबी,
बात मतलबी, हालात मतलबी,
सब मतलबी मतलबी मतलबी,
मतलबी मतलबी मतलबी....-
जीवन
कहीं असीम खुशियां तो कोई ग़म में डूबा है,
ये ज़िन्दगी है या कोई अजूबा है,
कहीं दौलत-ए-ताज है तो कोई बेअनाज है,
कहीं हसरत है शोर की तो कोई बेआवाज़ है,
ईश्वर, अल्लाह,मालिक जाने उसका क्या मनसूबा है,
ये ज़िन्दगी है या कोई अजूबा है,
चोट,दर्द,ग़म और आंसू का अपना ही याराना है,
मिला कोई एक किसी से सबको साथ निभाना है,
वक़्त से पहले वक़्त ना जाने ग़म में कौन डूबा है,
अरे ये ज़िन्दगी है या कोई अजूबा है।।-
कि मिसाल बन जाये,
कारनामे ऐसे करो कि बेमिसाल बन जाये,
लोगों को देखो, उनको सुनो
अच्छा बुरा सब खुद गुनो,
जरूरी ये नही की हर बार जीत अपनी हो पर
मेहनत ऐसी करो कि इस्तेकबाल बन जाये।।
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दास्तान ए सफ़र की क्या बताऊँ तृष्णा,
तू ही राह, तू ही मंज़िल अरे ओ कृष्णा,
सफ़र जो तेरी हसरतों का अंजाम है,
सफ़र है वही जिसके नए आयाम है,
दिल, दोस्ती या प्यार, हम चाहत से अनजान है,
वक़्त और किस्मत के हम सब गुलाम हैं,
जीवन की चक्की में हम सबको है पिसना,
तू ही राह, तू ही मंज़िल अरे ओ कृष्णा,
तेरी खूबसरती का बखान करने वाले अल्फ़ाज़ कहाँ,
खुदमे तुझे लिख दूँ, तुझसा हसीन आफ़ताब कहाँ,
बस तू सिर्फ तू....
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खुदको लेखक समझना मेरी भूल थी,
मैंने वो लिखा जो ज़िन्दगी ने मुझे दिया...-
हमसे भी सुनो,
कहानियों की परेशानियां हमसे भी सुनो,
ख्वाब देखे थे हमने किसी पे मिटने के,
उनकी उम्मीद बन जाने के फ़साने हमसे भी सुनो,
लोग प्यार करते हैं, इक़रार भी करते हैं,
ना इक़रार कर पाने की ज़ुबानी हमसे भी सुनो,
वो ऐसे मिले की खुदको भूल गए हम,
निकम्मे हो जाने के बहाने हमसे भी सुनो,
ज़िंदगी अलग मुकाम पे होती, ग़र वो रूबरू ना होते,
बर्बादियों के अफ़साने हमसे भी सुनो..
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