तेरे जैसा कोई दिखता ही नहीं
कैसे दिखता? कोई था ही नहीं
तू जहाँ तक दिखाई देता है,
उसके आगे मैं देखता ही नहीं..❤-
मेरी अभिलाषा है की
हर रोज़ जब सूरज की पहली किरण
तुम्हारे चेहरे पर पड़कर और प्रकाशित हो
तो प्रियतम उस मनोरम दृश्य का साक्षी हूँ मैं
मैं तुम्हारी पूजा के बाद वो जो माथे पर लगा
कुमकुम जो तुम्हारी पवित्रता को
मनोहर बना देता है उसका प्रथम दर्शक हूँ..
तुम जब संध्या में चाय की चुस्कियां लेते हुए
दिन भर का हाल सुनाओ तो,
उसे उत्सुकता से सुनते हुए
आनंद का अनुभव कर सकूँ..
रात्रि भोजन का पहला निवाला
तुम मेरे हाथों से ग्रहण करो
और फिर निद्रा में जो शांति और शीतलता
तुम्हारे रूप को और अधिक निखारती है..
उस छबि को अपने हृदय में अंकित कर सकूँ..-
दिल समझता है सब झूठ-फरेब
भले बोले ना..
तज़ुर्बा बता देता है हर वादे का मोल
ये मन भले तोले ना..
छलक जाता है निगाहों से
अंदर का गुबार ..वैभव!
इंसान लाख जुबां सी ले
भेद भले खोले ना..-
इस कदर दीवानी हो वो की
चुने वो जो भी तेरी तरफ जाती उसकी हर राह हो..-
मायूस ना हो ऐ दिल
ये दौर-ए-ग़म भी
बस इक मरहला ही तो है
ये धूप-छाँव,ये मुस्कान,ये आँसू
क्या है प्रीत?
बस ज़िंदगी का सिलसिला ही तो है
माना की भोर अभी दूर बड़ी है,
हमें भी कहाँ फिर जल्दी पड़ी है
संग काट लेंगे,
कुछ कोस का फासला ही तो है-
बदलतें हैं..
आपके दृष्टिकोंण और व्यवहार-
समाज के प्रति आपका
और
आपके प्रति समाज का..
वक़्त अच्छा तो
सभी बदलाव अच्छे गिने जाते हैं
वक़्त बुरा तो
सभी बदलाव बुरे माने जाते हैं..-
काट देते हैं सब बंधन जो रोकें हमारी ऊड़ानों को
चलो दिल के भरम सारे आज हम तोड़ देते हैं..-
समझदार से जो बतलाया
वे लगे नई फिर जुगत बताने
यारों से जो बात कही तो,
लगे लफंडर मज़े उड़ाने
अपनों से जो कहना चाहा
वो अपनी मुश्किल लगे सुनाने
खुशियों में संग भीड़ मिलेगी
ग़म में लगेंगे हाँथ छुड़ाने
मन की मन में रखियो भाई
दिल का दर्द तो दिल ही जाने..
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मोती व्यर्थ बहाने वालो !
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है? नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी,
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालो।
डूबे बिना नहाने वालो !
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गयी तो क्या है
ख़ुद ही हल हो गई समस्या,
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या,
रूठे दिवस मनाने वालो !
फटी कमीज़ सिलाने वालो !
कुछ दीपों के बुझ जाने से आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी ।
जैसे रात उतार चाँदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालो !
चाल बदलकर जाने वालो !
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं
शिकन न आई पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं
चहल-पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालो
लौ की आयु घटाने वालो
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफ़ानों तक ने छेड़ा पर
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफ़रत गले लगाने वालो !
सब पर धूल उड़ाने वालो !
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है।
- गोपालदास नीरज-