और किसी के नहीं, विकल मन अपने पास रहो
अपनी चोटें, अपनी चिंता, अपने त्रास सहो
सबके अपने अलग राग हैं, अपने-अपने सपने
सब आए हैं अपनी-अपनी राहों मरने-खपने
सहयोगों के नाम छद्म है, अपनत्वों के पट पर
हम सब अलग-अलग घायल हैं अपने-अपने तट पर
अपनी-अपनी क्षमता नापो, अपनी आस गहो
संबंधों की भाषा अनगढ़, अनबूझी, अनबोली
इसीलिए अपने अंतस में अपनी-अपनी होली
अपने हैं उत्ताप और अपने-अपने मरहम हैं
अपने ही संवेग और अपने-अपने संयम हैं
अपने कमरे में बैठो, अपने आकाश बहो
और किसी के नहीं, विकल मन अपने पास रहो..
- कृष्ण मुरारी पहारिया-
कुछ ऐसा हो कि ये मन उदास ना हो
किसी से उम्मीद कोई आस ना हो
हाथ मिलाते रहें लोग मिलते रहें
पर कोई हमेशा हाथ थामे रहेगा
ये विश्वास ना हो
काश ऐसा हो..
राह में शीतल छांव रहना काफी हो
ना दिल में आरज़ू जगे कोई
ना अरमान बाकी हो
समझें की आप बस रैनबसेरा भर हैं
किसी की मंज़िल बन सकते हैं
नहीं ये गलतफहमी पास ना हो..
कुछ ऐसा हो की ये मन उदास ना हो..-
चंद रोज़ में मैं तुम्हें पाने चला था
मैं अलग ही दुनिया बनाने चला था
सोचा की क्यूँ नहीं मिलोगी?
जो, निश्छल प्रेम दूँगा
मैं भाव अपने सारे उड़ेल दूँगा..
पर नियति के भी अपने खेल निराले हैं
भूल गया..के हम कहाँ संग चलने वाले हैं
किनारे पर हो तुम, मैं अभी पड़ा भंवर में हूँ
मैं बस इक पड़ाव..तुम्हारे लम्बे सफ़र में हूँ..-
तेरे जैसा कोई दिखता ही नहीं
कैसे दिखता? कोई था ही नहीं
तू जहाँ तक दिखाई देता है,
उसके आगे मैं देखता ही नहीं..❤-
मेरी अभिलाषा है की
हर रोज़ जब सूरज की पहली किरण
तुम्हारे चेहरे पर पड़कर और प्रकाशित हो
तो प्रियतम उस मनोरम दृश्य का साक्षी हूँ मैं
मैं तुम्हारी पूजा के बाद वो जो माथे पर लगा
कुमकुम जो तुम्हारी पवित्रता को
मनोहर बना देता है उसका प्रथम दर्शक हूँ..
तुम जब संध्या में चाय की चुस्कियां लेते हुए
दिन भर का हाल सुनाओ तो,
उसे उत्सुकता से सुनते हुए
आनंद का अनुभव कर सकूँ..
रात्रि भोजन का पहला निवाला
तुम मेरे हाथों से ग्रहण करो
और फिर निद्रा में जो शांति और शीतलता
तुम्हारे रूप को और अधिक निखारती है..
उस छबि को अपने हृदय में अंकित कर सकूँ..-
दिल समझता है सब झूठ-फरेब
भले बोले ना..
तज़ुर्बा बता देता है हर वादे का मोल
ये मन भले तोले ना..
छलक जाता है निगाहों से
अंदर का गुबार ..वैभव!
इंसान लाख जुबां सी ले
भेद भले खोले ना..-
इस कदर दीवानी हो वो की
चुने वो जो भी तेरी तरफ जाती उसकी हर राह हो..-
मायूस ना हो ऐ दिल
ये दौर-ए-ग़म भी
बस इक मरहला ही तो है
ये धूप-छाँव,ये मुस्कान,ये आँसू
क्या है अनु?
बस ज़िंदगी का सिलसिला ही तो है
माना की भोर अभी दूर बड़ी है,
हमें भी कहाँ फिर जल्दी पड़ी है
संग काट लेंगे,
कुछ कोस का फासला ही तो है-
बदलतें हैं..
आपके दृष्टिकोंण और व्यवहार-
समाज के प्रति आपका
और
आपके प्रति समाज का..
वक़्त अच्छा तो
सभी बदलाव अच्छे गिने जाते हैं
वक़्त बुरा तो
सभी बदलाव बुरे माने जाते हैं..-
काट देते हैं सब बंधन जो रोकें हमारी ऊड़ानों को
चलो दिल के भरम सारे आज हम तोड़ देते हैं..-