- "माँ की प्रभुता" -
ईश्वर ने रचा सृष्टि को,
किंतु क्षमता न इतनी पाई।
आने को धरती पर प्रभु को भी,
ज़रूरत 'माँ' की पड़ी दिखाई।।
कहा गया जग में यह भी कि,
प्रभु को हर क्षण हर स्थान,
उपस्थित होने में है कठिनाई ।
जटिल समस्या, समाधान को,
विधाता ने है 'माँ' बनाई।
जननी स्वरूप में जन को,
परमेश्वर, पड़ें दिखाई।
माँ ! ममता का सागर है,
न माप सके कोई गहराई।।
होती यदि जननी न,
क्या सृष्टि सृजन कर पाती ?
कैसे कोई संतान धरा पर,
जन्म मात्र ले पाती।
खोकर अपना अस्तित्व वो,
ममता का धर्म निभाती है !
इसीलिए इस जग में सदा,
माता महान कहलाती है।
स्थान सर्वोच्च पाकर "माँ",
प्रभु से पहले पूजी जाती है।
करे "माँ" की महिमा का वर्णन,
क्षमता कलम ने, न इतनी पाई।
माता की प्रभुता के आगे,
फीकी पड़ जाये प्रभुताई ।।
- वैभव मिश्रा
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