Vaibhav Chhangani  
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Joined 16 August 2017


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28 MAR 2021 AT 9:55

होली है भई होली है , रंग बिरंगी होली है
रंगो से फूलों से कृष्ण कन्हाई ने खेली है

संत बनूं ना बनूं सन्यासी रंग बिखेरू काशी काशी
फूलों के रंगीन टुकड़ों में प्रेम सजाए बुआ मासी।
पीकर प्यार का भांग ये जनता कैसे डोली है
होली है भई होली है, रंग बिरंगी होली है।।

# अनुशीर्षक पढ़ें #

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9 MAY 2021 AT 16:29

चेहरे पर हल्की हल्की झुर्रियां है कि,
मानो वक्त ने अपने हस्ताक्षर दिए है।

लगता है कईयों ने मुखौटे पहने है,
या कईयों ने मुखौटे उतार दिए है।

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11 APR 2021 AT 11:32

गलती पुनरावृत्ति
एक चींटी चढ़ रही थी
बार बार मेरे ऊपर
कभी पैर के बालों में
कभी हाथ के छालों पर
कई बार हटाया उस को
फिर आती रहती निरंतर
अब रास ना आने लगी
गुस्सा आ रहा था उसपर
मैं उसे मारना नहीं चाहता था
सच,पर वो चढ़ चुकी थी मुंह पर
कुछ ऐसे ही है इंसान भी
एक ही गलती करते परस्पर

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29 MAR 2021 AT 15:47

निगाहों के शब्द

मैं डरता नहीं हूं, चुप क्यूंकि प्यार करता हूं
डरपोक नहीं हूं , खामोशी से प्यार करता हूं

ये रवैया तो नहीं है, पर प्यार में मूक हूं
क्या करूं होना पड़ता है बड़ा बेवकूफ हूं

निगाहों को हौले हौले निहारते राही बन जाते है
मेरे लफ्ज़ तुम्हारे होठों को देख स्याही बन जाते है

चाहता हूं कि जाने से पहले बांहों में झकड़ लो
मेरे इज़हार के लफ्जों को निगाहों से पकड़ लो

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27 MAR 2021 AT 11:29

गिले शिकवे भी समेट लेता है
कटु वाणी में मृदुल की खोज कर लेता है
ये प्रेम भरा हृदय

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26 MAR 2021 AT 21:18

SMILE ONE DAY

IN SOMEONE'S TEARS

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26 MAR 2021 AT 20:50

नहीं जी नहीं , निषेधात्मक ही सही
पर कितना ये आसान है कहना
जन से नहीं , समुदाय भी नहीं
पर कितना कठिन अपनों से सुनना
मुठ्ठी भर से तो रिश्ते निभाने में ही
तिनका तिनका सबको चुनना
इश्क नहीं तो जिम्मेदारी ही
पर कितना मुश्किल मिलकर चलना
क्या बात करने की इजाजत नहीं
पर कितना भारी शब्द बुनना
कभी खट्टी - मीठी या कड़वी सही
पर कितना अगम्य अहमियत समझना

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25 MAR 2021 AT 22:15

तुम नूर हो मै राही हूं
तू बिंदु है मैं इकाई हूं
इस राही की मंजिल
राह नहीं पर नूर है
पथिक की मुश्किल
प्यास नहीं फितूर है
मैं उत्साहित भी उतना
मौन बैठा हूं जितना
एक एक पल जीता
एक एक पल मरता
इतनी उपमाओं से तुम्हे सजाता
प्यार के शब्द पिरोके गीत बनता
तेरा मेरा रिश्ता भी कैसा सनम
एक कोरा कागज और कलम

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22 MAR 2021 AT 12:58

मै जल
हूं हां जल ही
तो हूं भिन्न भिन्न स्वरूपों
में हूं अलग थलग रंगो में भी
न्यारे न्यारे प्रदेशों से भी ना जाने कितने
और नजरिए है, आपके पास मेरे लिए ,पर
हूं मै एक ही बहता हूं नदी और नालों में जोड़ता
हूं जीवों की आपसी कड़ियां भूत और भावी कालों
में, मै सभी प्राणियों का अंश भी हूं कोशिका का
पूर्व वंश भी हूं , मैं नहीं होऊंगा तो आप
जियोगे कैसे मेरे बिना एक पल रहोगे
कैसे, हां मै अमृत हूं
अमृत ही तो हूं

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21 MAR 2021 AT 17:44

A poem
Is not only
A few words
Of a poet But
It's the vision
Of a person
About Contemplation
And
His
Emo
-tions

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