काश आपके कंधो पर एक बार फिर चड़ कर सारा जहां देख पाता,
काश आपकी उँगली को पकड़ संभलना सीख पाता,
होते आप तो कोई ग़म नहीं होता,
काश एक बार फिर उस भगवान से आपको छीन ला पाता!!-
सुबह-सुबह कि वो बारिश और हाथ में चाय का कप एक अच्छी सुबह का आगाज था!
वो टिप-टिप बरसा पानी, तेज बहती हवा
काले बादलों में चमकती बिजली!
मानो प्रकृति का अद्भुत श्रंगार था
वो प्रकृति को जीने का एक अलग एहसास था।-
कल यू ही बिखर गए थे हम
सिमटने की शुरुआत फिर से करेंगे..!!
जिस राह पर रुक गए थे कल
वही से शुरुआत आज फिर करेंगे..!!-
उसका आना मानो जैसे
पतझड़ के बाद बसंत
सुबह निकलते सूरज की किरणें
बारिश के समय चलती हवा
चारों ओर खुशनुमा मौसम
यह मानो ज़िंदगी का दूसरा आगाज़ था।।
जैसे-2 बाते बढ़ी मानो चाहत
ओर भी बढ़ने लगी
चाहत कुछ इस तरह थी हमारी
पूरा वक्त बात होती थी
मगर वो बातों में भी लड़ाई होती थी
लेकिन वो लड़ाई में भी मानो प्यार था.
यह मानो ज़िन्दगी का दूसरा आगाज़ था।।-
शहर बनते गए गाँव मिटते गए ज़िन्दगी कुछ इस तरह बदली कि
न जाने हम कब गाँव वालो से शहरी बन गए
अब लिखूंगा उसी दिन जब दुःखो के ये दिन टल जायेंगे
जब शहरी से वापस गाँव वाले बन जायेंगे।।
क्योंकि ये गाँव ही है जहाँ की हवा भी अपनी लगती है शहर में अपने होते हुए सब पराये से लगते है।।-
बेचता है अखबार वो, स्कूल जाने के लिए।
पढ़ना चाहता है अपना घर चलाने के लिए।।
बोझ नहीं बनते बच्चे गरीब के कभी,
खो देतें हैं बचपन परिवार का बोझ उठाने के लिए
वो बचपन मे भी बड़े बन जाते है परिवार को बढ़ाने के लिए
खुद न पढ़कर तकलीफे सहते है भाई बहन को पढ़ाने के लिए
सारी उम्र दुसरो का सहारा बनकर जिया जब उसको सहारे की जरूरत थी सब हाथ छुड़ा गये
खो देतें है बचपन कुछ बच्चे परिवार का बोझ उठाने के लिए..!!!
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