म्हारै जामण पै कुनबै आळा दुःखी होग्या;
पण म्हांका बापूजी घणां जोर गा राजी होग्या।
गाम भर मांयने बापूजी थाली बजायी;
अर नाच नाच कै म्हारी छठी मनाई।
म्हारै बापूजी रो एक ही कहणों;
छोरा- छोरी मांय भेद करण सूँ किं नहीं बनणो।
म्हांका बापूजी म्हानै या ही सीख दीनी;
ईं जीवण मांय तूं किं सूँ भी कम कोनी।
हाथ पकड़ म्हानै चालनो सिखायो है;
किं भी हो ज्या कदै हार नी मानणी यो ही बतायो है।
म्हांका बापूजी ही म्हारी दुनिया है;
उणरी हाँसी सूँ ही तो रोशन म्हारी बगिया है।-
I hope you ... read more
ठंडी ठंडी पून रा झोंका चाल्या।
मेह छोड़ सगळा काम रजाई मांय भाग्या।।
जठै देखो सगळा री छूटी है काँपणी।
कहवै है बाबो म्हारो सियाळा मांय छूटी धूजणी।।
ख़याल म्हारै हिवड़ै मांय आयो।
कियां रह्वै हैं कारगिल सियाचिन मांय फौजी भायो।।
मेह बड़ ग्या गुदड़ा मांय जद सियाळा मांय छूटी धूजणी।
बे सीमा पर खड्या बंदूका तान उड़ावण नै दुश्मन री धूजणी।।
छाती चौड़ी कर बे म्हारी रुखाली खातर खड्या होग्या।
के बेरो कितना दिन अर कितनी रात्यां तावड़ै मांय बैठ्या होग्या।।
बात आवैं थानै म्हानै बैठ्या बैठ्या कि सियाळा मांय छूटी धूजणी।
जार देखो सियाचिन थे आप कहोगा भायां थे हो महान म्हारी तो सियाळा मांय छूटी धूजणी।।-
थी कदै इसी भी एक रात।
निकलै थी हिवड़ै सूँ म्हारै एक ही वात।।
कठै बीत ना जावै रातलड़ी।
देख ल्यूँ जी भर थानै कर ल्यूँ जी री बातड़ली।।
चाँद- तारां सूँ सजेड़ी खुशियाँ सूँ भरेड़ी।
थी थारै जन्मदिन री बा रातलड़ी।।
हाथां मांय म्हारै थारो हाथ हो।
सूपणा साची होग्या सगळा, सागै यो अहसास हो।।
सगळै संसार नै मैं सिर पै उठा राख्यो हो।
थारै जन्मदिन रै वास्तै सगळो शहर सजा राख्यो हो।।
देख कै थारै चेहरे री खुशी कहवो थो हिवड़ो म्हारो एक ही बात।
कठै बीत ना जावै रातलड़ी, रुकै टेम रो काँटों तो बनै जी री बात।।
(सगळी रचना पढ़ैण रै वास्तै अनुशीर्षक पढ़ैण री कृपा कीजो। घणो घणो आभार सा।
Please read in detail in caption.. Thanks)-
बात आज थारी - म्हारी ना सै,
बात म्हारे देस कै साढ़े 10 करोड़ भाई - बहना री सै।
के ग़लती सै उणकी जै पैदाइस ही इसी सै उणकी,
मेह भी जाम्यां सां आपणै अहसासां सागै; बै जाम्यां सैं सागै उणकै।।
क्यूँकर अपनाण मांय उणनै मेह नाट्या करया सां,
न्यारा सैं बै म्हारै सूं अजीब कोन्या; क्यूं मानैण नै नाट्या करया सां।
ज़्यादा सां मेह तो; के थोड़ा नै मेह भूल जावांगा,
के जाति, रंग, छुआछूत आली तरियां समलैंगिक आलो भेद भी अपनावांगा।।
लोगां कै अधिकारां नै छोड़ क्यूँकर समाज की बात करां सां,
समाज म्हारै सूं सै मेह समाज तैं कोन्या; क्यूं ना समझण की बात करां सां।
जीण को, आपगो सोचण को अधिकार; बणको भी सै,
क्यूं रीति की बात करकै घिसी-पिटी लकीरां मांय बँधेड़ा पड़्या सां।।
रामायण, महाभारत, मुद्राराक्षस जिसा ग्रंथां मांय भी है जद है जिक्र उणको,
इब बिग्यान की सोच राखण आला भी क्यूं नहीं देवण लाग रह्या बणनै सम्मान उणको।
ऋग्वेद री ऋचा भी प्रकृति अर विकृति री बात करै सै,
रोमन, यूनान जिसा देस बणनै सम्मान देवै सैं; तो म्हाने क्यूँकर बात अखरै सै।।
बात थारी - म्हारी ना, बस सबकै जागणै भर री सै,
समाज की झूठी चेतना से बाहर आणै भर री सै।
बात थारी - म्हारी ना सै, आपणै सैं अलग भाई - बहना नै आपनाण री सै।
बात थारी - म्हारी ना सै, बात सोच अर अधिकारां री सै।।-
काली अँधेरी रातयाँ मांय बैठी देखण लाग रही थी आसमान।
एक आवाज़ आयी कानां मांय जण राख दिया सवाल जितणो दीखे थो आसमान।।
कुण री तलाश मांय डूबी है म्हारी गुड़िया प्यारी।
माँ पूछ बैठी थी यो सवाल लेके चिंता सारी।।
सवाल तो घणो मामूली थो।
पण जवाब मांय थी पहेलियाँ भरी पड़ी।।
इब के तो मैं उणनै बतावती के मैं समझावती।
खो गी उणकी लाडली उंकी तलाश मांय हूँ पड़ी।।
टाबरपणै को बो बेफ़िक्री आलो मिज़ाज।
कठै भी ना दीखे थो आज।।
इब बिना बात थारी लाडो नै हाँसी कोनी है आवती।
सांची कहूँ तो झूठी हाँसी हर टेम आपणै चहरे पर है सजावती।।
तलाश है मैंनै थारी लाडो की, जो सगळै दिन थी चहचावती।
कोनी बेरो इब क्यूँकर चुपचाप सी है आवती और जावती।।
क्यूँकर इब भीत के गेलानै सूं सिसकी सुणाई है पड़ती।
सांमी पूछ ल्यो तो बड़ी सारी हाँसी कै सागै बात टाल है जावती।।
तलाश है मैंनै थारी उस चिड़कली की।
बहुत होग्यो कठै तो इब बा मिल ज्या।।
कुण री तलाश है या पहेली म्हारी भी इब सुलझ ज्या।
कुण री तलाश है या पहेली म्हारी भी इब सुलझ ज्या।।-
इतना भी कहाँ आसां है किसी से यूँ बेइंतहा नफ़रत कर पाना,
खुद के एक हिस्से को जलाना पड़ता है नफ़रत निभाने के लिए..-
जो विश्वास की डोर थाम खड़े हो सको साथ मेरे,
तो आना तुम; यूँ दिखावे में तो बहुत हैं पास मेरे..
जो सुन सको तुम कभी अनकहे अल्फाज मेरे,
तो आना तुम; अपने सुनाने को तो सब साथ हैं मेरे..
जो हँसती आँखों में पहचान सको अनसुने दर्द मेरे,
तो आना तुम; हँसने को तो यूँ भी बहुत हैं साथ मेरे..
जो कर सको फ़क्र कभी तो आना तुम साथ मेरे,
यूँ कहने को तो दुनियां भी साथ ही है साथ मेरे..-
कहाँ निभा पायेगा कोई किरदार मुझसा;
आख़िर हर बाजी हारना मंजूर किसे है!-
अजी काईं बोलो हो थे,
म्हानै तो एक ही बात रो बेरो है सा
जै छोरी नी चावै तो किंगी भी हिम्मत कोणी पड़ै सा
ऐ छोरियाँ घरूं बारणै निकलणो आजादी मानै है सा
इब काईं करोगा थे इसी आजादी रो कि जीवण ही ना रह्वै
टेम रै सागै बाँधणो तो घर ही पड़ै है छोरी नै
बीनणी बणकै पोणी तो रोटी ही है
देखणो तो ओ घर बार ही है
इब इंया तो है कोणी कि बा पढ़ लिख ज्यागी
नौकरी करण लाग ज्यागी तो आदमी सो मान पा ज्यागी
आपरै खातर लड़ भी लेगी तो भी कै
रह्वैगी तो बा लुगाई जात ही नै
कुणसो मेह म्हारै छोरां नै सिखा दयांगा
अर कुणसो मेह आप मान ज्यांगा
कि आदमी अर लुगाई एक बराबर ही होवैं सैं
ना भायां ना म्हारै सूँ दिखाओ कोणी हौवे
काल भी बा लुगाई जात थी
इब भी बा लुगाई जात ही है
काल भी मिनट मिनट मांय मरै थी
इब भी मरण ही लाग रही सै..-
नारी सशक्तिकरण की सिर्फ़ बातें होती हैं यहाँ,
पर सही मायने में बराबरी का अर्थ ही कितनों ने समझा यहाँ..-