V kumar   (vk)
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Joined 12 February 2020


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Joined 12 February 2020
13 APR AT 18:03


अनंत, अमर,अम्बुधि सा फैले ,
अंबुवाह हों बाहें तेरी ,,,
परचम भी लहराए ऐसे ,,
जैसे विजय पताका मेरी ,,,
निर्झर - अविरल से बहना तुम ,,
दूर गगन को छूना तुम,,
हंसते रहना हर पल जीवन में,,
पाना हर एक आशा तुम,,
दौड़ लगाना ,आगे बढ़ना,,
उड़ना फिर बन तेजस तुम,,,
कितना अद्भुत यह शुभ दिवस है ,,
आज तुम्हारा जन्म दिवस है ।
~ विनीत

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21 FEB AT 22:58

ना-रसा दिल की हसरतें,कर गया है तू,
बहर-ए-फ़ना में अब उतर गया है तू ,,
कोई भी दवा असर नहीं करती,
कामीने कम-ज़र्फ़ क्या मर गया है तू ।

~ विनीत

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8 AUG 2023 AT 23:26

त्रप्त भी अतृप्त सा,
कौतूहल भी मौन सा,
भीड़ में एकाकीपन,,
ये आदमी है कौन सा,,

अनवरत इच्छाओं का,
पूर्ण कुछ आशाओं का,
शोक में है कुछ छुपा,,
ये आदमी है कौन सा,,

दीप के धुएं लिए,,
मौन के मजे लिए,,
मुग्धता में गुंथा हुआ,,
ये आदमी है कौन सा,,

मोक्ष की साधना,,
व्यसन की व्यासना,
मुक्ति द्वार पे खड़ा,
ये आदमी है कौन सा।

~ विनीत

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8 MAR 2023 AT 22:40

आखिरी निशानी भी ले जा रही हो अपनी,,
अब इतना भी नुकसान ना करो मेरा ।।

~ vk

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14 DEC 2022 AT 21:12

मैं और कहता भी क्या ,,
अब अपनी सफाई में,
हर एक इल्जाम जो लगा था मुझ पर,
बड़ी सफाई से।

~ विनीत

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27 FEB 2022 AT 17:20

मृत्यु के मृदंग ये,
काल की तरंग ये,,
मौन हो, सुनो जरा,,
शून्य में रुको जरा,,

मान भी, अभिमान भी,
ये नामोनिशान भी,,
कुछ नहीं फिर शेष होगा,,
बस यही अवशेष होगा,,

दिन नहीं उगेगा फिर,
रात ना ढलेगी फिर,,
सुख की चिंता नहीं,
दुःख ना रहेगा फिर,,

सब एकाकी हो जाएगा,
कल की झांकी हो जाएगा,,
विस्मृतियों के झुंड में,काल के इस खंड में,
सब कुछ कहीं छुप जाएगा, !!

~ विनीत



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25 FEB 2022 AT 22:15

ये जिंदगी कैसे- कैसे इम्तिहान लेती है,,
कतरा कतरा जो जिंदा हैं,
उनकी धीरे- धीरे जान लेती है!


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16 FEB 2022 AT 19:13

तिमिर घना छंट रहा,
आकाश के दर्पण में अब,,
सब कलाओं से गुजर कर,
पूर्ण - मासी का चाँद आया,,

छत नहायी चांदनी में ,
और फिर खिल-खिलाए कमल,,
शृंगार की कोपल में रहकर,
पूर्ण - मासी का चाँद आया,,

मौन की पीड़ा द्रवित हो,,
बह चली पोखरों से अब,
गुंजन सुधा सी बयार लेकर,,
पूर्ण - मासी का चाँद आया!!

पूर्ण की पूर्णता में,
कौन अब व्याकुल रहेगा,,
श्वेत- शून्य का आकार दिखाने,,
पूर्ण - मासी का चाँद आया!!

~ विनीत

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23 JAN 2022 AT 22:29

क्य कहूँ अब मैं ,,
वक़्त -ए- रुखसती की बात,
हर बार की तरह अब
ये बात भी रहने दे !

~ विनीत

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22 JAN 2022 AT 17:54

कृष्ण की बंसी बजी तो ,,
गोपियां सब आ गईं,,
प्रेम की धरती सजी तो,,
गोपियाँ सब आ गईं,,,

नेह के बंधन पुकारें,,
बांसुरी की धुन में जब,,
कृष्ण को अपना बनाने ,,
गोपियाँ सब आ गईं,,

बृज की धरती खिल-खिलाए ,
हंसते हुए सब देखकर,,
कृष्ण में सुध-बुध गंवाने ,,
गोपियाँ सब आ गईं,,

प्रेम के आलिंगन बने तो, ,
राधा भी जब शर्मा गईं,,
और उसका दिल जलाने, ,
गोपियाँ सब आ गईं!

~ विनीत

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