उसको देखने वाले मुझको ये अक्सर बोलते हैं वो जिन्हें छूकर गुजर जाए, वे पत्थर बोलते हैं उसके आगे मेरी सारी बातें फीकी पड़ जाती हैं उसके घुंघरू में न जाने कितने अक्षर बोलते हैं..
जब आदतन मिरी तस्वीर पे उंगली घुमाई होगी, फिर बरसात में वो भीगने बाहर तो आई होगी, ये जो खुशबू फिज़ा में फैल के बहका रही मुझे, मेरा दिल कहता है कि उसने मेंहदी लगाई होगी..
मेरा चेहरा मेरी दौलत मेरी औकात नहीं देखी, मेरे हिस्से में है जो दुखों की सौगात नहीं देखी, बड़ी नादान है अंजान वो दुनिया की रस्मों से, मुझसे दिल लगा बैठी पर मेरी जात नहीं देखी..
बेखयाली मन में छा चुकी है, और कलम बेहोश है, मेरा दर्द बढ़ता जा रहा है, न होश है, न ही जोश है, मैं भी बन्दा बड़ा कमाल का होता था मेरे यार पर, कुछ तनहाईयों ने लूटा,कुछ खामोशियों का दोष है ।