समय से पहले का प्रेम!!! ( कितना सही रहता है??)
अपनी आकांक्षाओ की बुनियाद रख रहा था,
कुछ कर गुजरने के सपने देख रहा था,
मैं धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था।
जब तक प्रेम शब्द ने दस्तख न दी !!
कहने को तो प्रेम था,
परन्तु जिंदगी की आशंका प्रति पल थी,
बचपन के बनाए सारे सपने
को लहूलुहान भी करने तैयार था,
जब उसने ही कर दिया फेर एक दिन,
उतर आया मैं लेखक के रूप में,
नई शक्तियां और समर्थ के साथ आगे बढ़ने को,
पहले से बदला कुछ नही, बस संसार के मूल रूप से रूबरू हो गया।
-