एक लड़की है अनजानी सी
जाने कैसी दिखती है ?
चेहरा उसका चाँद सा है ?
या हीरे सी चमकती है ?
है जन्नत की हूर वो ?
या फिर जन्नत उसमें बस्ती है ?
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भिंगी अखों से आपको देखने की कोशिश में हूँ।
मुझे पता है, अब आप मिल नहीं सकते,
फिर भी आप हीं को खोजने के कोशिश में हूँ।
कास आपको पता होता किस कदर यहाँ तड़प रहे हैं हम,
किस को बताऊँ हर पल मुस्कुराते हुए मर रहे हैं हम।
क्या होता अगर कुछ और पल ठहर जातें आप,
अधूरे ख़्वाहिशों को पूरा करने का बस एक मौक़ा दे देतें आप।
और अब जो चले गए तो बस एक काम मेरा कर देना,
दादी माँ से कहना उन्हें हम याद करते हैं।
और काश़ उस वक़्त हम बता पाते,
की हम आप दोनों से कितना प्यार करते हैं।
Love you ❤️🥺🙏-
ख़ता हमारी तो बता देते,
यू जाने से पहेले पता अपनी तो बता देते।
एक बार तो सोचे होते हाल अपने दिवानो का,
इतनी दूर जाने से पहेले कम से कम गले तो लगा लेते।
और नाराज़गी इतनी, की एक शब्द तक ना बोले।
कम से कम एक बार तो हमें प्यार से बुला लेते ।।
हाँ हाँ सबको एक ना एक दिन जाना होता है,
मैं सब समझ रहा हूँ ।
सुनो नही समझना मुझे, मैं कुछ नहीं समझ रहा हूँ ,
और ये दिल के बाशिंदे ही अक्सर छोड़ क्यों जाते हैं,
ज़िंदगी में महत्वपूर्ण लोग अक्सर नाता तोड़ क्यों जाते हैं ।।
जिसे मैं कल कंधे पे उठाया था,
कल तक वो मुझे कंधे पे उठता था।
ये लोग बस आज के मंजर पे रो रहे हैं ,
मुझे तो कल का भी मंजर नज़र आ रहा है।।
बाबा जी 🥺🙏
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ये वक़्त का खेल भी अजीब हैं।
जिसने चलना सिखाया था मुझे ,
आज उसके चलने का मुन्तज़िर हो रहा।
सुबह उठने के फ़ायदे जिसने बताया मुझे ,
आज उसको उठाने का भरपूर कोशिश हो रहा।
जिसके एक बार बुलाने पे मैं दौड़ा चला आता था ,
वो आज नजाने क्यों मेरे लाख बुलाने पे भी नहीं बोल रहा।
मुझे पता हैं वो नाराज़ हैं मुझसे ,
या ख़ुदा कहें दें उसे की इतनी नाराज़गी भी ठीक नहीं।
महफ़िलों में खुद को मज़बूत दिखा रहा हूँ ,
तुम्हें पता हैं ? किस कदर ये एक- एक दिन गुज़ार रहा हूँ।
जीवन और मृत्यु इस दुनिया में एक मात्र सत्य है ,
ये मैं जानता हूँ।
मगर मुहब्बत में बहुत ताक़त होती हैं ,
ये भी तो मैं जनता हूँ।
आज सबके नम आँखों में एक उम्मीद देख रहा हूँ ,
तू एक योद्धा है ख़ुद से हर वक़्त बोल रहा हूँ।
बाबा जी 🙏❤️-
तुझे मैं कुछ बोल नहीं सकता ,
सो अब कलमों का सहारा लिए जा रहा हूँ।
और मेरे मुहब्बत की तकड़ीस पे कभी प्रश्न ना करना,
तुझे बिन देखे भी तुझसे मुहब्बत किए जा रहा हूँ।
तुझसे मुहब्बत तो है जाना,
मगर तुझे पाने की चाहत को अब दिल में ही दफ़न किए जा रहा हूँ।
और मुझे मुहब्बत की इल्म देने वाले,
तुम्हे क्या पता ये मैं जान बूझ कर नादान बने जा रहा हूँ।
ख़ुद से ज्यादा किसी और से मुहब्बत करना,
बस एक यही गलती मैं बार-बार किए जा रहा हूँ।-
तुझे चाहना मेरी गलती थी, ये मैं मानता हूँ।
मगर बेहद खूबसूरत थी ये गलती, ये भी मैं जानता हूँ।
तुझसे दिल लगाना अब भारी पड़ रहा हैं,
किस्तों में हर्ज़ाना चुकाना पड़ रहा हैं।
सच ये भी है की आयु के साथ मायूसी भी बढ़ती जा रही है,
अब तो जबरन मुस्कुरा कर दर्द छिपाना पड़ रहा है।
और बताओ जाना तुम्हारे यहाँ क्या चल रहा हैं।
तुझसे दिल हारना भी ज़रूरी था,
लोगों का दिल जीतना सिखा दिया।
शुक्र है मुझे मोहब्बत तो हुआ,
क्या हुआ जो एक तरफा ही हुआ।-
आज मैं कभी न निभा पाने वाला वादा कर आया ,
मोहब्बत में हार,उससे किनारा कर आया।
वो चाहते हैं हम दोस्त बन कर रहें ,
दोस्त ! हम से ये ना हो पाया ,
सो किनारा कर आया !
हिज्र का ये समय भी कट जाएगा ,
घाव जो मिला है मोहब्बत धीरे-धीरे ही सही लेकिन भर जाएगा।
यार एक बात बता ?
ज़िंदगी में इस पागल को कभी भूला पाएगी क्या ?
हाँ यह सच है कि हज़ारों दीवाने भरे पड़े हैं बाज़ारों में तेरे।
मगर जब बात सच्चे दीवाने की होगी ,
तो दिमाग़ में मेरा नाम सोच ख़ुद को मुस्कुराने से रोक पाएगी क्या ?
मुझे ख़ुशी है की हज़ारों दीवानों में मेरा नाम तुम्हें याद रहेगा ,
ये भी सच है कि जीवन भर तेरा इंतज़ार रहेगा।-
ये जो तुम ख़ुद को आशिक़ बताते हो,
इश्क़ का मारा,मुहब्बत को जुल्मी बताते हो।
सुना है सरेआम उसको बदचलन,बेवफ़ा बताते हो ,
यार बातिल हो तुम,क्या ख़ाक आशिक़ी करते हो।
दोस्तों के महफ़िल में अक्सर उसे बदनाम करते हो,
फिर भी कहते हो तुम उससे बेइंतहा प्यार करते हो।
इश्क़ करना और उससे भी इश्क़ का उम्मीद करना,
क्या इसको तुम एक व्यापार समझते हो ?
यार इसे इश्क़ नहीं जिस्म की ज़रूरत कहते हैं।
सुनो उत्कर्ष ये मुहब्बत है ,
ये जबरन नहीं होती।
और इनकार सुनने की हिम्मत नहीं है ?
यार उत्कर्ष मुहब्बत में अक्सर एकरार नहीं होती।
मुहब्बत उससे जिसे आपसे मुहब्बत हो,
सबकी ऐसी क़िस्मत नहीं होती।-
ऐ ख़ुदा ! बचा लो आज एक बार फिर से मोहब्बत को बदनाम होने से,
एक और आशिक़ को मोहब्बत में नाकाम होने से।
जब इतना मुक़द्दस है ये मुहब्बत भला,
फिर दुश्मन क्यों बन जाती है ये ज़माना सारा।
क्या हुआ अगर तुम्हारा मुहब्बत मुकम्मल ना हुआ,
ख़ुशी मना कम से कम तू इंसान तो हुआ।
अब तो हुक्मरान की जीत की जश्न कुछ इस तरह मन रहा,
सरेआम अवाम का क़त्लेआम हो रहा।
तुम्हारे यहाँ तो खुलेआम बहन,बेटियों का बलात्कार हो रहा !
और बताओ दीदी तुम्हारा महिला शक्तिकरण वाला जुमला कैसा चल रहा ?-
उसका इस कदर मिलना मुझसे,
और फिर इतना पास आ जाना।
यार ये महज़ इत्तफ़ाक तो नहीं हो सकता।
ये बादलों के ऊपर जो खुदा है ,
या खुदा तू इतना बेरहम तो नहीं हो सकता।
वो अपने सोच में क्या सोच रहा है,
ये मैं सोच-सोच कर पागल हो रहा हूँ।
ऐ खुदा तू ज़रा सोच कर मुझे बता,
कि वो अपने सोच में क्या सोच रहा है।
अजीब से मंजर से गुज़र रहा हूँ,
मौत से भी डर रहा हूँ , फ़र्ज़ को भी समझ रहा हूँ।
मुझे पता है ये मौत का समंदर है।
मगर कोई जान से भी अज़ीज़ है,
जो बीच धार में फँसा है।
जिस पेड़ का मैं टहनी हूँ,
जड़ हैं वो उस पेड़ का।
वो मुझपे जान छिड़कता हैं,
मैं उसपे जान लुटाता हूँ।-