अगम अगोचर आदि अनंता, आप आधारा आप अचर..
शून्य समाहित आप शिरोमणि, कण-कण आप बसे शंकर..-
डम-डम डमरू बोल रहा है डोल रहा धरती अम्बर..
नाचे नाग, नन्दी, नन्दीगण, नाच रहे भोले शंकर..-
सुंदर, शिवम, सत्य, समदर्शी, शिवापति, शाश्वत शेखर..
शोभित शीश शशि अति सुंदर, जय शम्भू जय जय शंकर..-
भस्म-भभूति भांग भोग कर, भोले लुटा रहे भर भर..
भक्तन-भयमोचन, भयहारी, जय भैरव जय जय शंकर..-
गड़ गड़ गरल ग्रहड़ कर, कर कर अमृत को देकर..
प्रलयानल के आप प्रलय, जय प्रलयंकारी,जय शंकर..-
रौशन रहे जहान मेरा, दीपक सा सदा जले है,
कठिनाइयों की धूप में, छाँव बनकर खड़े है,
वो दोस्त भी है, हौसला भी, नींव भी, बुनियाद भी,
मेरे लिए मेरे पिता भगवान से भी बड़े है...
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मैं सोच रहा हूँ आज क्या कहूँ?
कोई प्यारी सी नज़्म मोहोब्बत पर,
या किसी धोखे की दास्तान कहूँ?
करूँ तारीफ़ें ताजमहलो की,
या किसी का बिखरा जहान् कहूँ?
ज़ाहिर करूँ खुशी,
या आँसू का दरिया कहूँ?
मैं हँस कर वेलेंटाइन कहूँ?
या नम आँखों से पुलवामा कहूँ...
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भगवान बिठाये है मंदिर में, मस्ज़िद में अल्लाह-ताला,
ध्यान लगते हिन्दू-मुस्लिम लेकर धर्मो की माला।
पर मेरी यह बात सुनो, बस ध्यान करो मेरी साक़ी का,
वही सभी मे बाट रही है सबके हिस्से की हाला।
( #मेरी_साक़ी तात्पर्य- प्रेम)-