मेरे दिल में अब पहले की तरह तुम्हारा ठिकाना तो रहा नहीं। जब से तुम इसके दरवाज़े के बाहर निकले हो तब से ये दरवाज़ा बंद ही है। दस्तक दी भी होगी शायद किसी ने कभी पर आवाज़ आयी नहीं कोई मुझे। इसके बाहर की दुनिया का अब कोई हाल चाल तक नहीं मुझे,मैं तो बस इसकी खिड़की पे खड़ा होकर रोज़ तुम्हे इसके सामने से गुज़रता देखता हूँ और इंतेज़ार में हूँ कब तुम इस तरफ़ आओ और मैं दरवाज़े की तरफ़ जाऊं तुम्हारे स्वागत के लिए। फ़िलहाल तो बस इस खिड़की पे खड़ा हो के तुम्हारे मुड़ने की आस है।
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