UTKARSH VERMA   (utkarshv)
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Joined 14 June 2018


Joined 14 June 2018
7 MAR 2021 AT 1:58

उम्मीद से बिल्कुल परे हुआ है
सो ठीक ही हुआ होगा

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12 NOV 2020 AT 18:40

कब तलक़ दूसरों की निशानियाँ निहारूँ
क्यों न तेरे अक्स को पन्नों पे उतारूं

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12 OCT 2020 AT 9:06

ख़ुदको तुझसे निकाल लाया मैं
तुझको ख़ुदसे नहीं निकाला है

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11 OCT 2020 AT 5:01

मुसाफ़िर और भी थे राह में टकराने को तेरे
मुक़ाम और भी थे पीछे छोड़ जाने को तेरे

महफ़िलें और भी थी दिल बहलाने को तेरे
वीराने और भी थे बच के जाने को तेरे

वो खोकर अपना वजूद अब भटका सा फिरे
सामान और भी था साथ ले जाने को तेरे

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9 OCT 2020 AT 6:40

न पूरा चलने दिया न रुकने ही दिया पूरा
ज़िन्दगी तूने हर काम आधा छोड़ा है

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30 SEP 2020 AT 18:39

वो जिसे पढ़ने की ख़्वाहिश थी कभी
इक सबक़ बन कर याद है अब

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27 SEP 2020 AT 21:24

तुम्हें फ़ुरसत में अफ़सोस हो कभी शायद
हमें भी फ़ुरसत मिली तो मुस्कुरा लेंगे

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26 SEP 2020 AT 17:20

ख्वामख्वाह जान साँसत में फ़साये है
सुकूँ लकीरों में ख़ोज ख्वाबों में नहीं

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26 SEP 2020 AT 7:50

अर्ज़ियाँ दाख़िल की ही थीं
तब तक फ़ैसला हो गया

रूह को उम्र क़ैद मिली
जिस्म मुआ रिहा हो गया

वो भी जाने अब कौन है
मैं भी क्या से क्या हो गया

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16 SEP 2020 AT 23:36

मेरे दिल में अब पहले की तरह तुम्हारा ठिकाना तो रहा नहीं। जब से तुम इसके दरवाज़े के बाहर निकले हो तब से ये दरवाज़ा बंद ही है। दस्तक दी भी होगी शायद किसी ने कभी पर आवाज़ आयी नहीं कोई मुझे। इसके बाहर की दुनिया का अब कोई हाल चाल तक नहीं मुझे,मैं तो बस इसकी खिड़की पे खड़ा होकर रोज़ तुम्हे इसके सामने से गुज़रता देखता हूँ और इंतेज़ार में हूँ कब तुम इस तरफ़ आओ और मैं दरवाज़े की तरफ़ जाऊं तुम्हारे स्वागत के लिए। फ़िलहाल तो बस इस खिड़की पे खड़ा हो के तुम्हारे मुड़ने की आस है।

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