हाथों में कमल, दिल में प्यार लिए बैठे है,
बेगैरतों की महफ़िल में लफ़्ज़ों का बाज़ार लिए बैठे हैं,
निकम्मे नालायक से कुछ ख्वाबों की बस्ती में रहते है,
दुनिया से बेखबर हम बस खुद की हस्ती में रहते हैं,
ख्यालों की दुनिया में एक अनदेखा ठिकाना है,
ना कोई चाहत है, ना किसी को पाना है,
एक आशिक़ी है, बस ख़्याल उसका कर लेते है,
सपना है या सच है ये सवाल खुद से कर लेते हैं
कब हुआ कैसे हुआ ये जवाब नहीं मिलता,
मेरी आंखों को तेरे अलावा कोई ख़्वाब नहीं मिलता,
गैर नशा करना चाहें तो शराब चाहिए,
हमें तो बस आपकी आंखों का शबाब चाहिए,
ख़ैर कितना लिखें तारीफ़ में कलम भी थक चुकी है,
तारीफें सुनते सुनते आप भी शायद पक चुकी हैं,
इस इश्क़ की दास्तां को यहीं आयाम देते है,
आज मेरी प्यार की गवाही हम दुनिया को सरेआम देते हैं।
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