डर
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Insta - kayastha_utkarsh
फिर आज इस दिल को करार आया
वो शख्स हम से मिलने इस बार आया,
जिसकी यादों में पलटे थे हमने कोरे पन्ने
उसके कलम से मेरे नाम का इजहार आया,
नजरें तेरी हमेशा की तरह मेरी तरफ ही थीं
इन नजरों के बीच बेमतलब ही अखबार आया,
और हम तो हो चुके थे हर तरह से ही तेरे
ना जाने क्यों अपने इश्क में संसार आया,
थक हार कर ही बैठे थे दिन भर के काम से
वो आया तो लगा जैसे इतवार आया...-
कभी छप गया किताबों में,
कभी मुंह-जुबानी हो गया,
कभी किस्सों में सिमटा मैं,
तो कभी कहानी हो गया...-
मुझ से दूर हो कर वो गंगा सी हो गई,
उसके छू लेने भर से मैं काशी हो गया..
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भटके दर बदर, कई रास्ते बदले, पर
उसके शहर फिर कभी मेरा जाना न हुआ,
उसके बाद फिर किसी से दिल लगाना न हुआ,
वो शक्स मेरे लिए कभी पुराना न हुआ...-
मैं जान लूटा दूंगा उस पर,
गर, मेहबूब मेरा बस मेरा हो...
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ना जाने क्यों न लोग मेरे वास्ते हुए,
ना जाने क्यों न खुशनुमा ये रास्ते हुए..
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अब हर रोज इक नौकरी के हो कर जी रहे हैं
जिंदगी के हर सुकून को हम खो कर जी रहे हैं..
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सूख रही हैं उम्मीदें, यूं इंतजार-ऐ-पहर में,
कि अब की बार बरसेंगे बादल मेरे शहर में...-
रातों की तन्हाई, खामोश रास्तों का सूनापन
अकेलेपन की आहट में किसे ढूंढे ये बैरागी मन..-