~ सफ़र ~
सफ़र आधा ही तय हुआ है,
मीलों की राह बाक़ी,
राही जाए या इलाही तो कहाँ जाए।
कुछ सफ़र तनहा चला है,
कहीं रास्ते हैं बंद,
राही चले या इलाही तो किस ओर चले।
शजर का छाँव ख़ाली पड़ा है,
कायनात नज़रबंद,
इश्क़ करे या इलाही तो किससे करे।
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~ उत्कर्ष_उवाच®™
हीनता के कारण ही महत्वकांक्षा का जन्म होता है, समृद्धि अवसर दे सकती है, कौशल नहीं।
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कहाँ छोड़ आए हम वो बचपन, वो बेफ़िक्री
जब सोचते हैं तो सोचते ही रहते हैं।-
अजीब विडम्बना है, हमें सभी सवालों के जवाब भी चाहिए और हम उत्तर से संतुष्ट भी नहीं होते। शायद प्रश्नों और उनके उत्तरों पर मनन करना ही मानवजाति को अन्य सभी जीवों से भिन्न बनाता है।
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~ ज़रूरी नहीं ~
ज़रूरी नहीं कि हम तुम सब जानें,
तुम हमें जानो, हम तुम्हें जानें,
गिरकर संभले हम खुद से कई बार,
तुम हमें थामो हम तुम्हें थामें,
क्यूँ रहते हैं हम एक दूसरे से दूर इतना,
तुम हमें पा लो, हम तुम्हें पा लें,
सुकूं कहाँ है एकतरफ़ा चाह में,
तुम हमें चाहो हम तुम्हें चाहें
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दुनिया में अगर सब कुछ काला और सफ़ेद होता तो चुनाव करना कितना सरल होता, लेकिन इसके विपरीत दुनिया रंगीन है जो शायद आपको चुनाव करना नहीं, आपको हर रंग से परिचित कराना चाहती है ।
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~ बचपन ~
एक क्षण तरुवर के नीचे,
एक क्षण अंबुद के पीछे,
एक क्षण नीले गगन में,
एक क्षण शीतल पवन में,
एक क्षण वो बचपन का,
अनगिनत ख़ुशियाँ दे जाता।
एक क्षण में खिलखिलाना,
एक क्षण का रोष,
एक क्षण में गुमसुम,
एक क्षण में जोश,
एक क्षण वो बचपन का,
काश फिर लौट आता।
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~ शराफ़त ~
रुकते हैं, ठहरते हैं,
जब जी करे चल देते हैं,
ये शराफ़त का शहर है,
यहाँ लोग उम्मीदें रखते हैं,
उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते हैं
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कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं है कल और आज में,
फ़क़त, कल वह करते थे जो दिल करता था,
आज जो भी करते हैं सोच समझ कर करते हैं।
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भीड़ तो बहुत होगी आपके शहर में,
सुकून चाहिए तो कभी गाँव जाइए,
गाँव के कुछ अपने उसूल हैं,
जब गाँव जाइए तो शहर छोड़ जाइए।
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