Utkarsh El Niño Bhaskar   (Utkarsh Bhaskar)
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Joined 13 May 2020


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31 MAR AT 17:54

ख़ामोशी हर किसी बात की जवाब नहीं होती,
इश्क़ में किस से ग़लतियाँ बे-हिसाब नहीं होतीl

नाराज़गी तो ज़िन्दगी भर-की रखनी थी तुझसे, पर,
काश मेरी आँखों में तुझसी शर्म-ए-आब नहीं होतीl

बातें जो दिल में दफ़्न है, वो दफ़्न ही अच्छे,
कुछ अरमानो के कुचल जाने से जिंदगी बे-ख़्वाब नहीं होतीl

वक़्त गुज़रे भी तू भूल ना पायेगा मेरा अंदाज़-ए-आशिक़ी,
झुलसती हो ज़मानों से, फिर भी नदी तालाब नहीं होतीl

पढ़ते रहते हैं अक्सर हम एक-दूसरे के चेहरे को,
क्या आशिक़-ज़ारों के ज़बान की कोई किताब नहीं होती?

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25 DEC 2024 AT 19:51

मुद्दतों से आँखों में एक सपने को संभाल रखा है,
उनके चेहरे के नूर ने महताब को बदहाल रखा हैl

मैंने शाम-ढले जुगनुओं को उनके साथ खलेते देखा,
बनाने वाले ने जैसे हूर-ए-फ़िरदौस का ख़याल रखा हैl

रातों ने उनके आँखों से काजल उधार लिया हो जैसे,
उनकी बिंदी ने सूरज को शर्म से कर लाल रखा हैl

उनके तारीफ़ में कोई लिखे भी तो भला क्या-क्या लिखे,
जहाँ भर के शायरों को उनके हुस्न ने कर कँगाल रखा हैll

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29 SEP 2024 AT 23:21

कुछ दिन यूँ ही गुज़र गए, कुछ यूँ ही गुज़ार दिए हमने,

ख़ुदके तबाही के वास्ते इस दिल को कितने औज़ार दिए हमने...

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22 SEP 2024 AT 2:24

समय जो बह गया दरिया-ए-ज़िंदगी में वो बेकार का है,
मेरी ख़ुशी उधार की है ये तेरा ग़ुरूर भी उधार का हैl

तूने पहले भी इशारों से काई बार समझना चाहा था मुझे,
ये दिल-लगी कोई चीज़ ऐसी-वैसी नहीं, ये खेल अंगार का हैl

यूँ जो नज़र-अंदाज़ करते रहते हो मुझे और इतराते फिरते हो,
समझने वाले समझ जाते हैं कि हो-ना-हो मामला प्यार का है l

मैं कैसे मान लूं कि इस बाज़ी में मेरी तुझसे हार हो गई,
अभी तो बिसात बिछाई है, अभी मिला मौका मुझे यलग़ार का हैl

मुझे पता है कि तुझे भी मुझे खोने का डर है थोड़ा-बहुत,
अगर नहीं, तो फिर किसके लिए रखा तूने व्रत सोला-सोमवार का हैll

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4 SEP 2024 AT 0:28

मैं  तुमसे  आख़िर  उसका  ज़िक्र भी  क्या  करूँ,

नहीं जो तक़दीर में उसका फ़िक्र भी क्या करूँ...

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15 AUG 2024 AT 21:23

हुई है हमसे जो ख़ता तुम उसकी सज़ा दो,
अगर होता हो इत्मीनान तुम्हें तो हमें कज़ा दोl

मैं कोई फ़रिश्ता नहीं ना हूँ कोई औलिया, इंसान हूँ,
पर हूँ गुनहगार तुम्हारा, हक से तुम मुझे अज़ा दोl

जो हुआ वो ग़लत था, लो सब गुनाह क़ुबूल किया,
दे सको माफ़ी तो ठीक नहीं तो सज़ा-ऐ-मुर्तज़ा दोl

चूर-चूर हुए भरोसे को कोई कहाँ तक समेटता फिरे,
ऐ हम-नवा! कर रहम और सारी रुसवाई को लज़ा दोl

क्या ये काम नहीं कि मुझपे ​​अब हँसती रहेगी दुनिया,
तुम रख के शिकवा मुझसे ना यूँ मुझे दर्द-फज़ा दोll

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2 AUG 2024 AT 14:19

मेरी शराफ़त को तू मेरी कमज़ोरी समझता है क्या?
मैं   जो  हूँ सुकून  से  तो  कुछ  खलता  है  क्या?

ख़ामोश  हूँ, पर  बोल  नहीं  सकता,  ऐसा  नहीं,
ज़लज़ला आने से पहले  वक़्त-पता  बताता है क्या?

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14 JUL 2024 AT 9:43

तू जो कर रहा है मेरे साथ वो बिल्कुल अच्छी नहीं,
तुझे करनी चाहिए मुझसे हर-एक बात सच्ची नहींl

तुझे बहुत मासूम समझता हूँ मैं अपने ख़यालों में,
मुझे  पसंद  तेरे  बारे  में  कोई  बात  ओछी  नहींl

कैसे मान लूं कि तू बे-दाग़ नहीं, तू पाकीज़ा नहीं,
मैंने आज-तक तेरे लिए कुछ ऐसी-वैसी बात सोची नहींl

आखिर क्या बताएं तुझे कि तुझसे मेरा राब्ता क्या है,
खैर ठीक है, मेरी कही कोई बात तुझे कभी जची नहींl

तू ज़माने का होना चाहता है और मैं तुझे ज़माने से बचाना,
क्या इतनी सी बात समझने की भी अक़्ल  तुझमें बची नहीं?

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9 JUN 2024 AT 20:56

कुछ बात है दिल में छुपा कर रखा,
आँखों में है एक सैलाब दबा कर रखाl

मेरे सब्र का बस अब इम्तिहान और ना लीजिये,
आपकी इज़्ज़त को अब-तक है बचा कर रखाl

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2 JUN 2024 AT 19:04

तलब मुझे उनकी कुछ वैसी है, जैसी रिंद को शराब की,


ज़रूरत हमें उनकी ठीक ऐसी है, जैसी प्यासे को आब की...

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