इतनी सोर हे पर दिल पे कही न कही खामोशी भी हे
जितनी रोशनी हे उस चमकती हुई बंगलो में
इतना ही अंधेरा हे उस शहर के पीछे बसती हुए बस्ती में , कभी निकलो तो उन सड़को पे जहा असली जिंदगी
की पहचान हो पाएगी , जो मुश्किल हे तुम्हारी वो भी
छोटी पड़ेगी उनके सामने कभी इस इंसान की मेहनत पर आई सुखी रोटी और चार साल की पुरानी कपड़े को देख ये सोचना जो जिंदगी तुम्हारी हे वो उनकी जिंदगी से कई बेहेतर हे पर ,एक बात की फर्क हे ये जिंदगी तुम्हारी जिंदगी जेसी नहीं, उन्हे सुभा मजबूर हो के उठाना हे और हम मर्जी के ,उन्हे मेहनत करनी हे और हम मनमानी और उन्हे जो नींद वो सुकून की आती और हम आराम की नींद लेते हे । और कभी घमंड की गुंजाइश हो तो एक बात सोचना ये जो घमंड हे उनकी
मंजिल तो बस उस मिट्टी तक जहा ना कोई सेठ और साहेब और न ही कोई मजदूर और भिकारी । वोही एक स्थान हे जहा आसमान में हो या जमी पर चलने वाला
हर किसिका पहचान एक होता है। ये जो वक्त हे वो तो सबका आता है बस सही वक्त की पहचान में लगा है जिंदगी । और जिदंगी सही मायने जानना हो मिट्टी से तालुक कभी न तोड़ना और कभी जिंदगी की घमंड हो जाए तो यह याद करना जब तुम अमर नही तो तुम्हारी घमंड तो तुमसे जुड़ा हे वो कैसे रह सकता हे ।
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