वो शब्द तो मैं अर्थ,
उनका अक्षर निरर्थक जिसमें अर्थ नहीं मेरा,
उनके भाव मेरे और मैं प्राण उनकी,
कभी-कभी साथ होकर भी हम अधूरे से जब दूरियाँ
मध्य हमारे हृदय के एहसासों में हो,
जब हजारों मीलों के दूरस्थ होकर भी शिवशक्ति से पूर्ण हम अर्धनारीश्वर स्वरूप से हो,
वो प्रेम उनका जो प्रेरणा बनकर प्रोत्साहित करता
मुझे जो चुनौतियों से निर्भय हो लड़ जाउँ मैं,
मैं स्नेह उनका जो धीर धरकर आशाओं के गगन में उड़ाने भरता जाए,
वो मेरे कन्हैया से मैं उनकी प्रेयसि राधा सी,
उनकी धड़कन की बांसुरी में साँसों से सरगम बाजे,
उनके सुन्दर पग पड़े जिस धरा पर
वो मधुबन बन जाए,
नाचू मैं कान्हा के मधुबन के रासलीला की राधा सी,
निर्मल स्नेहिल नजरों से मेरे मन को स्पर्श करते जाएं,
मेरे आँखों से प्रेमाश्रु छलछलाते मेरे मन की प्यास बुझती जैसे शीतल जल से,
मैं मीरा सी जोगन वो मेरे आराध्य कृष्ण से,
हे देव मेरे कब तक मेरे मन मंदिर में विराजित रहोगे,
कभी वास्तविक दर्शन दो मुझे मीरा से,
दर्शन कर मैं तुम्हारे, तुम में ही लीन हो जाऊँ मैं मीरा सी।
-