We are all perfectly imperfect, but we are all made complete by the contributions of our family, friends, and society, and that is the absolute truth.
हम सब पूरी तरह से अपूर्ण हैं, लेकिन हम सभी हमारे परिवार, मित्र, और समाज के योगदान से ही पूर्ण होते हैं और यही पूर्ण सत्य है।-
My dear life, I commit with you that I will always live each and every moment with you smiling in every situation.
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चल रहा है वो चीर कर तिमिर को,
लेकर मन में आत्मविश्वास की एक उजियारी लो को।
कभी ना थकता कभी ना रुकता,
कभी ना डगमगाता खुद पर आत्मविश्वास उसका।
चलता रहता है बड़े ही स्वाभिमान से भरा हुआ,
अपने कर्त्तव्य और जिम्मेदारियों का निर्वहन करता हुआ।
अपनी कर्मठता से प्रेरित करता समाज के लड़खड़ाते कदमों को,
सुस्त तन में भरता नयी स्फूर्ति को और भरता मायूस मन में नयी उमंगों को।
शारीरिक विकृति से है अंग-अंग,
परंतु मस्तिष्क से है दिव्यांग।
जो समाज के साथ कांधे से कन्धा मिलाकर अपने सहयोग का भागीदार है,
वो समाज का अभिन्न अंग पूर्ण दिव्यांगजन है।
समाज के हम वो अधूरे से लोग जो स्वस्थ्य है शारीरिक रूप से,
परंतु मन और मस्तिष्क से हैं अस्वस्थ और विकृत से।
भटकते हैं कभी अपने पथ से तो कभी अपने कर्तव्यों से,
कभी अपनों के सम्मान को छिन्न-भिन्न करते, तो कभी किसी की अस्मिता को, तो कभी किसी के शरीर को छिन्न-भिन्न करते अपनी ही विकृत मानसिकता से।
हे ईश्वर हम शारीरिक रूप से कुरूप हो, पर हृदय से कुरूप ना हो,
हे ईश्वर हम शारीरिक रूप से अपंग हो पर मस्तिष्क से अपंग ना हो।
आज अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस की सभी मित्रों को हार्दिक बधाई।💐🙏🏻😊
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Waqt kabhi kisi ka hua hi nahi, uska toh swabhav hi hai badalte rahna,
sirf apno ka sath, pyaar, unke duwara ki hui hamari dekhbhal aur unka ham par kiya hua viswash hi hamare andhar ek aatmviswadh ko bhar deti hai, jo sakaratmakta ka utserjan karti hai, jo hame majbooti se har paristhiyon me dat kar samna karne ka housla deti hai.-
वो शब्द तो मैं अर्थ,
उनका अक्षर निरर्थक जिसमें अर्थ नहीं मेरा,
उनके भाव मेरे और मैं प्राण उनकी,
कभी-कभी साथ होकर भी हम अधूरे से जब दूरियाँ
मध्य हमारे हृदय के एहसासों में हो,
जब हजारों मीलों के दूरस्थ होकर भी शिवशक्ति से पूर्ण हम अर्धनारीश्वर स्वरूप से हो,
वो प्रेम उनका जो प्रेरणा बनकर प्रोत्साहित करता
मुझे जो चुनौतियों से निर्भय हो लड़ जाउँ मैं,
मैं स्नेह उनका जो धीर धरकर आशाओं के गगन में उड़ाने भरता जाए,
वो मेरे कन्हैया से मैं उनकी प्रेयसि राधा सी,
उनकी धड़कन की बांसुरी में साँसों से सरगम बाजे,
उनके सुन्दर पग पड़े जिस धरा पर
वो मधुबन बन जाए,
नाचू मैं कान्हा के मधुबन के रासलीला की राधा सी,
निर्मल स्नेहिल नजरों से मेरे मन को स्पर्श करते जाएं,
मेरे आँखों से प्रेमाश्रु छलछलाते मेरे मन की प्यास बुझती जैसे शीतल जल से,
मैं मीरा सी जोगन वो मेरे आराध्य कृष्ण से,
हे देव मेरे कब तक मेरे मन मंदिर में विराजित रहोगे,
कभी वास्तविक दर्शन दो मुझे मीरा से,
दर्शन कर मैं तुम्हारे, तुम में ही लीन हो जाऊँ मैं मीरा सी।
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उत्तेजना से जन्मे प्रेम की आयु कुछ क्षण की,
आकर्षण से जन्मे प्रेम की आयु कुछ दिनों की,
प्रतिभाओं से प्रभावित जन्मे प्रेम की
आयु सीमा कुछ सालों तक,
माता-पिता के आशीर्वाद से बांधे हुए
परिणय सूत्र से जन्मे हुए
प्रेम की आयु एक ही जन्म तक,
लेकिन जो प्रेम समर्पण, त्याग, निस्वार्थ
भाव से उत्पन्न और सौम्यता के
रस से भरा हुआ है वो अनंत जन्मों तक
समय की धुरी को तैय करता रहता है,
अर्थार्त उसके अंत की कोई सीमा नहीं होती।-
उत्तेजना से जन्मे प्रेम की उम्र कुछ क्षण की,
आकर्षण से जन्मे प्रेम की उम्र कुछ दिनों की,
प्रतिभाओं से प्रभावित जन्मे प्रेम की
आयु सीमा कुछ सालों तक,
माता-पिता के आशीर्वाद से बांधे हुए
परिणय सूत्र से जन्मे हुए
प्रेम की आयु एक ही जन्म तक,
लेकिन जो प्रेम समर्पण, त्याग, निस्वार्थ
भाव से उत्पन्न और सौम्यता के
रस से भरा हुआ है वो अनंत जन्मों तक
समय की धुरी को तैय करता रहता है,
अर्थार्त उसके अंत की कोई सीमा नहीं होती।-
कितने ही हजारों मिलों के फ़ासले दरमियान हो,
पर दिल में करीबी का एहसास हो
तो फ़ासले सर्दियों की धुंध की तरह रह जाते है।-
Yourquote as a my friend provoke me to writing and develop thoughts.
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मुस्कराहट जब हौले-हौले अधरों पर फैलती है,
तो जैसे सूर्योदय की लालिमा युक्त चादर धीरे-धीरे धरती पर फैल रही हो, जैसे वसुंधरा ने चमचमाती सुनहरी ओढ़नि से स्वयं को सँवारा हो।
पूर्णिमा की चंचल चांदनी इठलाती हुई समुन्दर की तरंगो पर जैसे नृत्य में उन्मत्त थिरकती हो।
जैसे खूबसूरत वादियों में ठंडी मदमस्त हवाओं के झोंके अंतर्मन को स्पर्श करते हो।
जैसे बारिश की ठंडी ठंडी बूंदे तन पर गिरते हुए मन को भिगोती हो।
जैसे सर्दियों में ओस की बूंदे पत्तों से गिरते हुए जमीन में विलीन होती हो।
जैसे सुगंधित खिलता हुआ पुष्प हवाओं में अपनी सुगंध को घोलता हो।
जैसे एक सुहागन के श्रंगार से उसके चेहरे पर सूर्य की किरणों का प्रकाश जगमगाता हो,
जैसे किसी युवा को पहली बार प्रेम का आभास हुआ हो।
जैसे एक नन्हें से बच्चे को वात्सल्य से पूर्ण उसकी माँ की गोद मिल गई हो।-