सागर की लहरों सा जीवन तुम्हारा मैं नदी की शीतल जलधारा तुम्हे बदलना चाहती नही मैं बस तेरे संग चाहूँ मैं चलना मैं जानू तू पश्चिम मैं पूर्व की धारा कभी मिल न पाएगा स्वभाव हमारा तुम्हे बदलना चाहती नही मै बस तेरे संग चाहूँ मैं चलना
टूटे पत्ते सी जिंदगी टूटकर डाल से जमी पे आ गिरी जुदा अपनो से ये किस जहाँ में आ गई अनजान देश मे अपने वजूद को तलाशती नजर ,कुछ डरी सहमी सी हवा के झोको संग उड़ चली किधर