तुम और मैं
स्थिर मन से तुम,
चंचल धड़कनो सी मैं।
कर्तव्यों की चाबी से तुम,
खुली खिड़की सी मैं।
इश्क के खुमार से तुम,
मिलन की तड़प सी मैं।
मां के साथ से तुम,
पिता के त्याग सी मैं।
दिए की रोशनी से तुम,
चौहदस की रात सी मैं।
घाट की आरती से तुम,
शिप्रा की लहरों सी मैं।
एक होने के जुनून से तुम,
साथ होने की खुशी सी मैं।
Urvashi Shrotriya
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