urmit shah   (Urmit Shah)
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Joined 7 November 2017


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Joined 7 November 2017
14 FEB 2022 AT 5:29

|| वेलेंटाइन विशेष ||❤✨🕊

प्रेम की परभाषा करना संभव नहीं,
क्यूँकि ये समझ में आए वो जज़्बात ही नहीं,

प्रेम जितना जटिल; और प्रेम जितना सरल;
दूसरा और कोई एहसास नहीं,

प्रेमी शायद गलत हो भी सकता है;
मगर प्रेम का गलत होना मुमकिन ही नहीं,

जिसे प्रेम हो जाए; और जिसे मिल जाए;
उससे खुशनसीब और कोई इंसान नहीं,

उस खुदा के बाद अगर कुछ पकीज़ा है,
तो वो प्रेम के अलावा और कुछ भी नहीं...!

- उर्मित शाह— % &

-


7 NOV 2021 AT 1:25

सुनो ना,
मैं तुमसे फिर मिलना चाहती हूँ,
फिर से मिलके उन यादों को साँझा करना चाहती हूँ,

वैसे ही अजनबी बन सारे जज़्बात फिर महसूस करना चाहती हूँ,
वो पहली मुलाकात से लेकर हर एक पल एक बार फिर से जीना चाहती हूँ,

वो पहली नज़र का मिलना;
एक दूसरे को देख यूँ मुस्कुराना;
और आँखों ही आँखों में कितनी ही बात फिर से कहना चाहती हूँ,

पहली बारिश में तेरे साथ फिर भीगना चाहती हूँ,
और चाय की चुस्कियाँ लेते हुए;
तेरे साथ फिरसे बुढ़ापे तक की गुफ़्तगूँ करना चाहती हूँ,

पता हैं की अब मुमकिन नहीं हमारा साथ होना;
मगर न जाने क्यूँ फिर भी दिल कहता है:

सुनो ना,
मैं तुमसे फिर मिलना चाहती हूँ...!

- उर्मित शाह

-


27 JUL 2021 AT 0:29

ऐ दिल, कब तक
तूँ सिर्फ किसी और के लिए धड़केगा?
और बार-बार मूँह की खायेगा,
कब तक प्यार के झाँसे में आकर;
हर बार तड़पता रह जाएगा,
कब तक लोगों पे भरोसा करके;
हर बार ठोकरें खायेगा,
खुद पर ओर ना जाने;
कितने छेद करवाएगा,
सोच ज़रा की इतने;
टूटे बिखरे तेरे अस्तित्व को;
कोई क्यूँ अपनायेगा?

- उर्मित शाह

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14 JUL 2021 AT 23:54

मैं ढूँढती हूँ खुदको;
तेरे सायें में,
तेरे तसव्वुर की चिंगारी में,
तेरे वजूद की हिस्सेदारी में,
ऐ रक़्स-ए-खुदा:
उन वादियों से निकल;
इस जोगन की;
तृष्णा मिट दे,
इस बेज़ार जीवन में;
नई सी आस जगा दे,
मन के खंडहरों में;
दीपक की ज्योत जला दे,
तुझसे मिलने की;
कोई राह तो दिखा दे!

- उर्मित शाह

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30 JUN 2021 AT 23:55

तुम जो होते भी तो
क्याँ बदल जाता?
वक्त का पहियाँ
कहाँ घूम जाता?
दिल का ज़ख़्म
कहाँ भर जाता?
या दर्द का सैलाब
क्याँ रुक जाता?
फ़र्क कोई न होता
तुम्हारे पास होने से,
मन और भी रोता
तुम्हारे साथ होने से।

- उर्मित शाह

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28 JUN 2021 AT 20:54

फ़र्ज़ करो के
उसकी धड़कन से
मेरी साँसे सुनाई दे,
फ़र्ज़ करो के
उसके होठों से
मेरी हँसी सुनाई दे,
फ़र्ज़ करो के
मेरे बाद भी
उसके साज़ में
मेरे नग़मे सुनाई दे,
फ़र्ज़ करो के
उसकी कविता में
मेरी दास्ताँ सुनाई दे,
आरज़ू बस इतनी सी है
बात मेरी हो और
आवाज़ उसकी सुनाई दे।

- उर्मित शाह

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27 JUN 2021 AT 13:54

परत दर परत
मैं खुलती रही
उसकी आग़ोश में,
मेरी श्वासों की धुनी उठती रही
उसकी छुअन के एहसास से,
प्रेम की कनी खाये
दरवेश की मनिन्द
मैं बिछती रही
उसके सामने,
जोगी की जोगन बनी
फिरती रही
इस संसार में।

- उर्मित शाह

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25 JUN 2021 AT 21:37

कायनाती रंगों की तरह
मैं तुझमे घुलना चाहती हूँ,
वक्त और हालत से
लड़ना चाहती हूँ,
तेरे इश्क में डुबकर
सिर्फ तेरी होना चाहती हूँ,
तुझसे मिलकर ये
कहना चाहती हूँ,
हो मुकम्मल अगर तो
हर जनम में तुझसे
फिर मिलना चाहती हूँ।

- उर्मित शाह

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19 JUN 2021 AT 18:29

हिज्र में तलाशती
बैठी हुई इस अंजुमन में
शमा-ए-बज़्म बुझने को हैं,
छिड़ रहे नज़्म और तराने
लेकिन साज़ में
दर्द महसूस होने को हैं,
उठ रही तन्हाईयाँ
इन चिल्मानों से और
जिस्म से रूह निकालने को हैं।

- उर्मित शाह

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19 JUN 2021 AT 0:11

इश्क में डुबे हम
न जाने कब
हिज्र के शिकार हो गए,
तेरी आग़ोश में रहते हम
न जाने कब
इतने तन्हाँ हो गए,
सीने में धड़कता था दिल;
और दिल से उठती धड़कन
न जाने कब
खामोश से हो गए।

- उर्मित शाह

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