STOP GIVING GYAN DURING MY FESTIVAL,
MY FESTIVAL ISN'T UR SOCIAL AWARENESS CAMPAIGN 🙏😊-
उलझने हैं बहुत...
सुलझा लिया करती हूं,
फोटो खिंचवाते वक़्त मैं अक्सर
मुस्कुरा लिया करती हूं.....।
क्यूं नुमाइश करूं मैं अपने
माथे पर शिकन की....
मैं अक्सर मुस्कुरा के,
इन्हें मिटा दिया करती हूं....।
क्यूंकि ....... ... ......
जब लड़ना है खुद को खुद ही से,
इसलिए.....
हार और जीत में कोई फर्क नहीं रखती हूं...
हारूं या जीतूं कोई रंज नहीं है,
कभी खुद को जिता देती हूं...
कभी खुद ही जीत जाती हूं..।
इसलिए मुस्कुरा लिया करती हूं😊-
दीमक भी पूरा नहीं चाटती
ज़िंदगी दरख्त की
तुमने क्यों सोच लिया
कि ' मैं ' वजह बन जाऊँगी
तुम्हारी साँसों की घुटन
तुम्हारी परेशानी की .-
घुटन की दलदल में फंसी
ज़िन्दगी का यही सिला है
चेहरे पर उभरती लकीरों में
दर्द का ही सिलसिला है
कुछ पल ठहर जाऊं कहीं
ज़िन्दगी का बस यही गिला है..........-
सुनो,,
मैं अब बदल गयी हूँ
मैंने अब छोड़ दिया है
दूसरों से अपना दुखड़ा रोना
सूख चुकी आँखों से
कोई मेरा दु:ख नही बांट सकता
हाँ लेकिन सहानुभूति के दम पर मुझे छल
ज़रूर कर सकता है
मैं छली गयी तो तुम्हारा दोष
होगा,
ये वक़्त तुम्हें फ़िर एहसास
कराएगा-
हर बार परीक्षा लेती है ज़िंदगी
क्यों कभी इतनी हैरान परेशान सी लगती है जिन्दगी ?
कभी तो गहन अनुभूति लिए तृप्त सी लगती है जिन्दगी
क्यों कभी मुट्ठी में रेत सी फिसलती ,दिखती है जिन्दगी ?
कभी ढलती संध्या भी, भोर की किरण सी दिखती है जिन्दगी.....😊-
कभी सुना था मैंने,शरीर मर जाता है;
परन्तु आत्मा जीवित रहती है
लेकिन आज के जमाने में शरीर तो जीवित है
परन्तु आत्माएँ मर चुकी हैं-
वो ख़ुश है आज बहुत मेरे बिना भी .....
उसको ख़ुश देखकर हम भी नम आँखो से मुस्कुरा देते है......-