कहीं वो शाम राख़ ना हो गई हो,
जहां तेरे इंतज़ार में मेरा चांद निकला करता था...-
मगर ये दिल तेरा था ' ज़ुबैद ',
मैं कैसे इसका ... read more
क्या बात है जो मुझे ख़ुद का शहेर नहीं भाता,
मैं दिन भर रात का इंतजार करू,
मगर मुझे रात का चांद नहीं भाता;
इन बारिशों में भी मज़ा है इश्क़ का,
मगर देखो तो,
मुझे बादल का यूं गुजर जाना नहीं भाता;
ख़्वाब देखने अच्छे लगते है मुझे,
मगर रातों को सुकून से सोना मुझे नहीं भाता;
छोड़ जाएगी ये दुनिया भी मुझे तन्हाई में,
तेरी तरह इसे मेरा साथ देना नहीं भाता...-
मुझ बेसबर को ये सबर नहीं मिलता;
कोई मुझे बता दे,
ये इश्क़ का काफ़िला क्यों नहीं मिलता;
तन्हाई इतनी है मेरे आशियाने में,
की तलाश करने पर भी कहीं सहारा नहीं मिलता....-
लिपट कर इन शाखों से,
तुम किस की आहटें सुनते हो !
तुम मेरे घर में,
या फिर मुझी में क़ैद रहते हो !
दिन भी ढल जाता है,
एक उस चांद के इंतज़ार में !
और तुम खोए खोए,
किसके इंतज़ार में जलते हो !
वो गुम है जो किसी शातिर के भेष में ;
तुम क्यूं उसे बार बार याद करते हो !
सो जाओ अब आंखें मूंद कर,
इस मोहब्बत में
तुम बस ख़ुद को मायूस करते हो । । ।
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कितने समंदर पी चुकी हैं ये निगाहें मेरी,
सिर्फ़ दीदार उसका करने को;
वो कहीं और दिल लगाए बैठा है अपना,
मुझसे बेवफ़ाई करने को...
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वो इश्क़ और इबादत में नहीं मानता;
और एक भूल मेरी भी है,
की मैं उसे अपना ख़ुदा कर बैठी हूं....-
ना करना कभी तु इस दिल के जस्बात पर गौर;
ये इश्क़ नहीं,
बस सौदे करना जानता है...-
गम बांटने जो मैं बैठी रात से अपना,
तो फिर सुबह हो गई;
सितारों की आग में जो महफ़िल जमाई मैंने,
तो फिर सुबह हो गई;
किस्से - करवटें बदलती रही जो रातभर मैं,
तो फिर सुबह हो गई;
रात का शोर सुनती रही जो मैं गौर से,
तो फिर सुबह हो गई;
ख़ुद को सुलझाने लगी जब मैं रातभर,
तो फिर सुबह हो गई....-
ये एक उम्र भी इंतज़ार में गुज़र जाएगी,
चाहतें सारी अधूरी ही रह जाएगी,
क्या शिक़ायत रहेगी इस ख़ुदा से अब मुझे ! ! !
मेरे इश्क़ में अब सिर्फ़ बंदगी रह जाएगी....
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नहीं रहीं अब कोई बात की मैं शिक़ायत करू,
वो भूल भी जाएं मुझे तो भी मैं गम किस बात का करू,
इश्क़ तो एक तरफा ही रहा है ज़माने से,
वो इज़हार भी करें तो मैं कैसे ऐतबार करू....
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