कहाँ है तू
कहाँ तू नहीं है-
किसी की नफरत का बहाना बन गया हूँ
किसी की ख़ुशी का ईशारा बन गया हूँ
टूटने पर मेरे उनकी ख्वाइश होगी पूरी
सही कहते हैं लोग, अब मैं सितारा बन गया हूँ-
महरूम, मायूस, अफ़सुर्दा, ग़मगीन, मजलूम,
पहले तमाम ज़ख्मो का परिचित बनता है,
यु ही नहीं कोई रचित बनता है...
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हमारा हाल-ऐ-हालात न पूछो,
बरस रही है मुसलसल मगर, कितनी है बरसात न पूछो,
पूछो जो चाहे मगर, हमारा गर्दिश-ऐ-हयात न पूछो ...-
करीब मुस्तक़िल, ये तबयत कुछ नासाज़ लगती है,
शायद मर चुका हूँ मैं, ये मेरे ज़ख्मो की आवाज लगती है...
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रिवायत-ऐ-कोशिशों को आम कर रहा हूँ,
मैं ज़मीन को ज़मीन से आसमान कर रहा हूँ ...
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उस रचित को मैं, तसव्वुर सी आस कर रहा हूँ,
बहुत हुआ फरेब खुदसे, अब अपना तखल्लुस उदास कर रहा हूँ !
- उदास-
अश्क़ शिकायत कर रहें हैं मुझसे, मेरी आँखों में फकत ख़्वाबों को ही जगह क्यों !
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सांसे चल रही मगर, फकत एक लाश रहता हूं,
एक मुद्दत से मैं वाकई, मुस्तक़िल उदास रहता हूँ...
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चंद मुस्कुराहटें भी यूं, हमें कहां मयस्सर हुई,
हमारे हक में तो माँगी गई दुआऐं भी बे-असर हुई...
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