Upendra Kumar  
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कवि उपेन्द्र कुमार,वाराणसी
Joined 1 January 2019


कवि उपेन्द्र कुमार,वाराणसी
Joined 1 January 2019
14 SEP 2021 AT 8:42

।।सोन चिरैया।।
मैं सोन चिरैया अपने बाबा की,इक दिन बड़ी हो जाऊंगी ।
करके सूना बाबा का आंगन ,दूर देश उड़ कर जाऊंगी ।
छोड़ माटी के खेल खिलौने ,गुड्डे गुड़िया उनके कपड़े गहने ,
छोटी सी चादर और छोटे नरम बिछोने।
वो बिना चाय की कप और प्याली,भरे से लगते थे होकर भी खाली ।
बोले बाबा एक दिन मुझसे ,कोई लेने आया है तुझको ।
तुमको उसके साथ है जाना ,जीवन भर होगा साथ निभाना ,
में समझ गई की यही है वो ,मेरे सपनों का राजकुमार ।
पलको पर रखेगा मुझको और ,मुझको करेगा जीवन भर प्यार ।
बाबा बोले तो मैं चल दी, वर्ना मुझको थी किस बात की जल्दी ।
हाथ में मेहंदी मैने रचाई,उसी शाम हो गई सगाई।
कल तक मैं थी इस घर की,अगले ही दिन हो गई पराई।
आसमान में उड़ चली मैं,करके सात समंदर पार।
पीछे छोड़ चली बचपन सारा,छूटे बाबा और उनका प्यार।
मन में था संकोच बहुत पर, नियति पर थोड़ा सा विश्वास।
देर शाम पहुचे हम दोनो,और खाकर पीकर सो गये।
सुबह जो मेरी नींद खुली तो,इनका कुछ भी पता नही था,
जिस बिस्तर पर में थी सोइ,उस पर कोई और भी था।
समझ पाती मैं कुछ इससे पहले,राजकुमार कमरे में आया।
कह पाती कुछ इससे पहले, हाथ मरोड़कर उसने धमकाया।
झर झर बहने लगे मेरे आंसू, पता नहीं किस्मत नें क्यों,
मुझको ऐसा दिन दिखलाया।
उपेंद्र कुमार, वाराणसी।

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4 FEB 2021 AT 16:03

।। कर्मण्ए वाधिकारस्ते ।।
भरे पेट की मूरछा लेकर
क्या होगा भाग रगड़ने से
शिव ऐसे नहीं आने वाले
बोल बम बोल बम पढ़ने से
गर है इच्छा कुछ पाने की
फिर तज दो फिक्र जमाने की
एक लक्ष्य अपना साधो
तिनका तिनका जमा करो
फिर उस तक पक्का पुल बाधो
पक्की हो जो पुल की डोर
सोच ना भटके चारों ओर

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9 JAN 2021 AT 15:46

सहजता और सतर्कता एक साथ मिलकर मनुष्य को ईश्वर बना देते हैं।

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9 JAN 2021 AT 15:33

ऑल आउट कितना भी एडवांस हो जाए मच्छर उसका एंटीडोट बना ही लेते हैं और हम से एक कोरोना वायरस का वैक्सीन भी नहीं बनाया जा रहा है।

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15 OCT 2020 AT 16:46

समस्या किसी की
मदद करने में नहीं,
बल्कि उसके बदले में
कुछ उम्मीद करने में
है।

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15 OCT 2020 AT 10:36

ले लो मेरी ज़िन्दगी ये हक सिर्फ तुम्हारा है,
उफ्फ तक नहीं करेंगे हम ये वादा हमारा है।
तुम्हारे प्यार ने ही तो मेरा जीवन संवारा है,
इश्क में जान चली जाए सौभाग्य हमारा है।
उपेन्द्र कुमार , वाराणसी।

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12 OCT 2020 AT 9:33


कहानी किस्सा फसाना अपना अपना,
गीत गजल तराना अपना अपना।
शौक से सुन लेंगे अर्ज मगर,
जो कुछ भी सुनाओ सुनाना अपना अपना।
उपेंद्र कुमार वाराणसी।

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26 SEP 2020 AT 6:40

भगवान : तुम मन संभालो, बाकी मैं संभाल लूंगा।

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19 SEP 2020 AT 13:20

फ़ालतू शायरी : पढ़ना बिल्कुल ज़रूरी नहीं।

दांत सारे झड़ गए तो क्या चहकना छोड़ दूंगा मैं जिंदगी में दारु कभी चखी नहीं तो क्या हुस्न देखकर भी बहकना छोड़ दूंगा मैं , ताउम्र रहा मैं धोबी का गधा तो क्या, गर्ल्स कॉलेज देखकर रहकना छोड़ दूंगा मैं

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10 AUG 2020 AT 16:56

।। ये कैसे दोस्त।।
दोस्त मेरे बड़े आलसी ,खड़े-खड़े सो जाते हैं
टीचर चिल्लाते रह जाए ,वह जाने कहां खो जाते हैं
थोड़ा सा कुछ कह दो इनको ,झट से ये पगलाते हैं।
अपना तो लाते ही नहीं ,मेरा लंच ही खाते हैं।
सारे बिल्कुल भुक्कड़ है ,और बड़ी-बड़ी बतियाते हैं।
लेकर खाली जेब कैंटीन में जाते हैं ,मिल जाए जो बकरा कोई
उसकी पॉकेट मनी उड़ाते हैं।
सोचता हूं कभी-कभी ऐसे लुल्ल दोस्त, लाइफ में ही क्यों आते हैं।
जिस दिन मिल ना पाए वो, व्हाट्सएप पर बतियाते हैं।
खुद ही तो पढ़ना लिखना है नहीं, मेरा भी टाइम खाते हैं।

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