सुनो,
छोड़ो ना ये नयी बातें
याद करो कुछ खट्टी-मीठी बचपन की यादें..-
मैंने अपने सारे फैसले पापा के
हवाले कर दिए मैं जानती थी
पापा का जो भी फैसला होगा
मेरे हक और भलाई में ही होगा
पापा ने सारे फैसले मेरे ऊपर
छोड़ दिए क्योंकि पापा जानते
थे मेरा कोई भी फैसला हमारे हक
और मूल्यों के विपरीत नहीं होगा।-
यादें
कुछ यादें ऐसी होती हैं
जो आंखों में नमी और होंठों पर मुस्कान देती है।
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कुछ भी तो नहीं।
लेकिन तुम्हारे कुछ वादे, तुम्हारा दिया वो गुलाब का फूल, और कुछ सुहानी शामें,
हमारे बीच कुछ होने का एहसास दिलातें है।-
खामियां उसमें भी थी जिसका हाथ हम छोड़ आए हैं
खामियां उसमें भी है जिसका हाथ हमने अब थामा हैं
खामियां हमें में भी है जो अपनी सहूलियतों के हिसाब से दूसरों में खमियां ढूंढने में माहिर हैं...
केवल अपनी खामियां छुपाने के लिए दूसरों में खामियां ढूंढने का ये खेल सदियों से चलता आया है,
आगे भी सदियों तक चलता रहेगा। ऐसे में अगर कुछ ऐसा है जो हम सभी से छूट जाता है तू बस जीवन जीने का सलीका छूट जाता है...-
दर्द सबके एक से है,
मगर हौंसले सबके अलग अलग है।
कोई हताश हो के बिखर जाता है,
तो कोई संघर्ष करके निखर जाता है।।
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