Upasana Yadav   (उपासना)
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Joined 14 October 2020


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28 MAY 2022 AT 15:12

प्रीत के बदले प्रीत सरल है,पूजा की धारणा कठिन थी
प्रेम सरल था राधा का,मीरा की साधना कठिन थी

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7 FEB 2022 AT 13:05

जिंदगी के खतम कुछ तराने हुए
जितने किस्से लिखे थे पुराने हुए
क्या कहूँ की कलम क्यों है थम सी गयी
उसको देखें भी कितने जमाने हुए

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21 MAY 2021 AT 0:43


खग मृग से पूछा बिलख बिलख,
अश्रु से निकले सिया नाम।
जग ने परखा बस पत्नि त्याग,
हार गया एक प्रेमी राम।




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19 OCT 2020 AT 11:36

मैं अविरल कल कल बहती हूँ,वो शांत चित्त एक योगी सा|
मैं सांसारिक सी लड़की हूँ,वो शंभुभक्त एक जोगी सा|

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5 JAN 2022 AT 14:31



रास्ता ना रहा सो सबर में कटी
जिंदगी जैसे उसके असर में कटी

उसके सायें में उसके शहर में रहे
एक उमर उलझनों के भँवर में कटी

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27 DEC 2021 AT 1:09

सूरज तड़पाता हैं
फिर ढलती हैं शामें
रोशन रातें करने
तारे बन जायेंगे
हम फिर मिल जायेंगे

निर्जन होगा जंगल
सुखा होगा उपवन
पतझड़ के मौसम में
सावन बरसायेंगे
हम फिर मिल जायेंगे

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21 DEC 2021 AT 22:23

कोई रुकी-थकी सी लहर सही,
हूँ तिमिर भरा एक पहर सही
एक वाणी जिसमें रोष नहीं,
मैं अब खुद में शेष नहीं


इस खेद भरे परिवर्तन में
हूँ खग सा निरंतर चिंतन में
हैं उड़ने का आवेश नहीं
मैं अब खुद में शेष नहीं।

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27 OCT 2021 AT 22:16

तू मुझको सोचे,लिखे मुझे कब मै ये मशक्कत चाहती थी ।
कब मैंने तुझसे खत माँगा,कब मैं ये मोहब्बत चाहती थी।

रूठूं मैं मुझे मनाये तू,कब मैं ये नजाकत चाहती थी
कब चाहा तेरा ईश्क बनू,कब तेरी नफरत चाहती थी

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23 OCT 2021 AT 13:45



सवेरा हुआ तू किसी के लिए,मैं तपती दुपहरी पिघलती रही
तू सूरज हुआ तो मुझे क्या भला,धूप में तेरी मैं जलती रही
तेरे ही निशानों पे चलती रही,धूप में तेरी मैं जलती रही

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7 OCT 2021 AT 12:04

जब कहर बने श्रृंगार गिरे
खल, दानव, शोणित, भाल गिरे।
जब नारी शक्ति जागे हैं
नतमस्तक हो संसार गिरे।

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