तेरी साँसों की नमी से कुछ यूं डूबता गया
कि तेरे बोसे जब बरसे मैं खुद को भूलता गया।-
ख्वाबों का सफर अब हम कैसे करते कि
जिसने ले ली थी मेरे हर ख्वाब की जगह
अब वही ख्वाब बन कही चले गये।-
उसकी सांसों को हम उसकी फरमाइश मानते हैं,
झुकती नज़रों को उसकी हम आजमाइश का पैगाम जानते हैं।-
कभी सूरज से जंग, कभी रात अपने को साये से मिलवाते रहे
अंदर के शोर को चुप करने के लिए हम बाहर चिल्लाते रहे,
और फिर तन्हाई से पूछते हैं,
क्या वाक़ई जिंदा है हम या बस जिंदगानी निभा रहे हैं।-
बिखरती शामों का हिसाब कैसे लगाते
कि हम दिन को समेटते रह गये,
रात की थकान को कैसे समझाते कि
हम दिन में ही चूर हो गये।-
उसकी आँखों में देख कर आइना भी शरमा गया,
सूरज उसके हुस्न की तपिश से बच कर छाँव में आ गया।-
उसकी उँगली ने मेरे होंठ रोके,
इश्क़ के मौन आदेश उकेरे,
तब जाना मैंने कि इश्क़ में उसे नहीं पसंद बोलना,
उसे तो पसन्द है- मेरी साँसों पर अपनी आरज़ू
उकेरना,
वो कहती नहीं, बस मदहोशी से निहारती है,
और मेरी रूह को इश्क के आदेश समझाती है
अपने इशारे से मुझे वो बाँध लेती हैं,
और अपनी ख़ामोशी से मुझे आज़ाद कर देती है
मगर उसकी कैद में।-
उसके उरुओं के आगे
आत्म-समर्पण कर जानी मैंने ये बात,
इश्क़ में जीत नहीं,
हार ही है सबसे बड़ी सौग़ात।-
ना तड़प, ना छटपटाहट, बस उसके हुक्म की इबादत,
और उसकी सजा में लिपटा मेरा इश्क हर वक्त।-