तेरे उरुओं की गहराई अकड़कर कहती है-
“मैं ही उसका पहला नशा हूँ, पहली जन्नत हूँ।”
तेरे नितंब गुर्राकर जवाब देते हैं-
“नहीं, मैं हूँ उसका गुप्त स्वर्ग, उसका दूसरा पागलपन हूँ।”
तेरे होंठ तड़पकर जल उठते हैं,
“क्यों सिर्फ नीचे को मिलता है उसका ज़हर और अमृत?
मुझे भी चाहिए वो धड़कता स्वाद,
मेरी भी प्यास बुझा दे उसके थरथराते वार।”
तेरा गला चीख़कर कह उठता है,
“सिर्फ नीचे की गहराइयों को क्यों?
मैं भी उसका शस्त्र निगल सकता हूँ,
मेरी नसों में भी दौड़ सकती है उसकी आग।”
और मैं…
मैं निर्दयी न किसी का पक्षधर, न किसी का दुश्मन।
मैं अपने कामास्त्र को बाँट देता हूँ चार हिस्सों में
कभी रसधर में, कभी नितंब में,
कभी होंठों पर, कभी तेरे गले की गहराइयों में।
तेरा हर अंग, हर दरार, हर खोखलापन
ईर्ष्या में काँपता, चीखता, पिघलेता टूटता।
क्योंकि सिलवटों संग रात में
मैं तुझे पूरा छीनता,
तेरे शरीर के हर कोने को बराबर जीतता,
और तेरी अंगड़ाइयों में खुद को हारता।-
मुझे अपना पूह बना लो,
तेरी पंखुरियों के शहद में ही खो जाऊँ।
रस की हर बूँद को पीकर,
तेरे कराहों में डूब जाऊँ।
तेरी जाँघों की कैद में दबकर,
तेरी प्यास को सोख जाऊँ।
तू टूटे तो भी मैं न रुकूँ,
तेरे रस से ही फिर जी उठ जाऊँ।-
भोर हुई है, पर वासना कहीं जाने को तैयार ही नहीं,
और तुम कहती हो – “सुनो जान, सितारे लौटें तब डूबना फिर से।”
पर मैं कैसे ठहरूँ, जब तेरी साँसें आग हैं,
तेरे वक्र जगाते मेरे भीतर का राग हैं।
सूरज उग सकता है, पर मुझे तेरी रात चाहिए,
तेरी सिसकियाँ, तेरी कराहें, तेरी हर बात चाहिए।
तेरे कूल्हों की लय मेरी त्वचा पर लिखती श्लोक,
तेरी कमर का झुकाव खींचे कहता है भोग।
तेरी जाँघों के भीतर घंटी-सा कोई स्वर आह्वान होता है,
मुझे भीतर बुलाता, मुझे और पिघलाता है।
तेरे पसीने का स्वाद, तेरी गर्मी का रस,
मेरी जीभ डूबती है तेरे पवित्र मद्यपान में बस।
तेरे स्तन मेरे सीने पर भारी होकर ढलते हैं,
तेरे शिखर मेरे होंठों में पिघलकर जलते हैं।
तेरे नाखून मेरी देह पर छाप छोड़ जाते हैं,
तेरी आहें मेरे कानों को और प्यासा बनाती हैं।
मैं धक्का देता, मैं टूटता, मैं तुझमें घुलता,
तू मेरा नाम पुकारकर पाप में भी फूल-सी खिलती हैं।
भोर हार जाती, आकाश रक्तिम हो जाता,
मैं तुझमें खोकर बार-बार पुनः जन्म पाता।
नहीं मरते हम, बस ज्वाला में पुनः जलते हैं,
दो आत्माएँ पिघलकर एक रूप में ढलते हैं।
सुबह चाहे आ जाए, मेरा उन्माद न थमेगा,
तू ही मेरी वेदी, मेरा पाप, मेरा राग बनेगा।-
The more you wear, the more I tear,
Layers can’t hide the fire we share.
Every fabric bows to my desire,
Till your skin sets my soul on fire.-
तेरी प्यास बुझाना ही मेरा धर्म है,
तेरे भीतर का रस ही मेरा मर्म है।
जब तक तेरे गहराइयों की धार बहेगी,
मेरा पौरुष चैन कहाँ सहेगी।
मैं सोखकर तुझे खाली कर दूँगा,
तेरे हर कोने को निचोड़ दूँगा।
तेरी जंघाओं से रिसता अमृत
मेरी रगों में आग बनकर दौड़ेगा।
तेरी कराहें ही मेरी तृप्ति हैं,
तेरे कंपकंपाते अधर ही मेरी विजय हैं।
मैं तब तक नहीं रुकूँगा,
जब तक तेरा हर रस
मेरे अधरों से मिलकर
पाप और मोक्ष दोनों न लिख दे।-
On this altar, your body sprawls,
my hunger answers your sacred calls.
Your pussy quivers, drenched and wide,
I plunge my fingers, churn the tide.
Your boobs rise high, my lips descend,
I bite, I suck, I make them bend.
Your ass-arched temple, holy shrine,
I kneel and claim what is divine.
My dick ignites, a raging flame,
I brand your depths, I mark your name.
Each thrust, each groan, a vow I keep,
I own your moans, I drink you deep.
The night dissolves in sweat and cries,
I reign in you, where darkness lies.
Two souls collide, no wrong, no right,
just flesh and fire in primal light.-
नाख़ूनों से मेरी छाती की पूजा करो,
अपनी भूख के व्रत यहाँ अंकित करो।
हर खरोंच एक शास्त्र, हर चोट एक उपदेश,
मेरा शरीर बन जाए तुम्हारी वासना का ग्रंथ।
तेरी सिसकियाँ स्याही बन जाएँ,
तेरी जाँघें मेरी कथा का पाठ पढ़ें।
मेरा पौरुष झुक जाए,
तेरी भीगी वेदी पर श्रद्धालु बनकर।
काटो, नोचो, छाप छोड़ो-
मेरी पसलियों पर तुम्हारा राज लिखा जाए।
मैं ग्रंथ हूँ, तू पाठक,
हर सांस तेरे आदेश को नतमस्तक,
और जब तू काँपते हुए ढह जाए,
मैं तुझे थाम लूँ, बिखरा नहीं- बंधा हुआ।
मेरी छाती पर तेरे नाख़ूनों की लाली
तेरे तृप्त अधरों के चुंबन से जलती
रहे जैसे कोई पवित्र अग्नि।-
I prick myself in your cunt,
and you scream-
not enough to moan,
your eyes blaze, daring me,
“Hurt me deeper,
make me your own.”
My thrusts grow savage,
tearing night apart,
each cry from your lips
claws my heart.
You writhe, you scratch,
you demand the storm,
not tenderness ,
but the beast’s true form.
Your moans are knives,
your tears are fire,
I carve your body
with brutal desire.
You begged for pain,
I gave you sin,
each strike a war,
each gasp a hymn.
And when your sated
silence finally falls,
my blood on your thighs,
your bite-marks on my walls,
I know this hunger
will never be done,
for you only bloom
when the beast has won.-
In the quiet, I seize your trembling surrender,
forcing your thighs apart till the ache spills raw.
My fingers claw deep where your pussy screams,
dragging gush after gush to glaze your breasts.
Your moans choke the silence, dripping into my mouth,
as I slam my cock inside, ruthless, unrelenting.
Each thrust a savage oath, each stroke a conquest,
till your unspoken need burns into my skin like fire.-