कर गया है जो दगा उस को भुला सकता नही
एक उसको ही था मांगा और पा सकता नही
मेरे दिल में दफ्न है जो राज़ है गहरा बड़ा
राज़ ये दिल का मैं उनको भी सुना सकता नही
आग की लपटों से अब मुझ को भला डर है कहां
जो चिता है जल रही अंदर बुझा सकता नहीं
है नई रंगीनियां पर जिंदगी अब है कहां
नाम के पीछे मैं उसका नां लगा सकता नही
छोटे बच्चो ने सिखाया सबको हंसना खेलना
खो गया बचपन अगर फिर लौट आ सकता नही
एक दिल था पास मेरे जीत कर तुम ले गई
बस बदन बाकी रहा उसको मिटा सकता नही
अब सुनो तुम सीख लो "अनचाही" से बस ये सबक
खास समझोगे जिसे वो ही निभा सकता नही
©अनचाही-
Ig - anchahi.anchahi
Ig - unsentletters365
Aaye ho to f... read more
वफ़ा के नाम पे अपना
मैं पूरा सर झुका देता
मगर तेरा रकीबों से
कभी पर्दा नहीं रहता
- अनचाही-
चलो !
आज हम और तुम एक वादा करते है
पूरा नहीं बस आधा करते है
तुम बनकर रहना कान्हा मेरे
हम ख़ुद को राधा करते के
चलो !!
आज हम और तुम एक वादा करते है
- अनचाही-
सारी रात मेरा ग़म बेचैन रखता है उसको
सारी रात वो बैठकर मेरी दुहाईयां पढ़ता है
- अनचाही-
तेरे होने से भी गर तन्हा हूं मैं
तो मैं तन्हा ही अच्छा हूं
- अनचाही
-
मैने कभी ढूंढ़ा ही नहीं उसे
ज़माने की भीड़ में
वो बिछड़ कर भी मेरे दिल में रहा
और वहीं मिला मुझे
वो कहते हैं के बहुत सस्ते है बाज़ार में खिलौने ?
मैं जाकर दूंगा उन बच्चों को चंद
है होंसला तो चल दिला मुझे
तुम्हारे आने से पहले भी तो तन्हा ही थे ?-२
अब जा रहे हो, तो क्या गिला मुझे
"हर्फ़-दर-हर्फ़" लिखा था बस नाम उन्हीं का
वो निकले दिलों अनपढ़,है इश्क़ में ये सिला मुझे
- अनचाही-
New beginnings
Everytime you try to erase one
Unknown error will come
You keep remembering them
And safe
Like a gem.
-
भागती सी ज़िन्दगी से थोड़ा वक़्त चुराने दो
मुझे उसके हाथों से थोड़ी सी चाय और पीनी है
.
वो रो रो कर गुज़ार देंगे अपनी ज़िन्दगी पैसों के चक्कर में
मुझे तो बच्चों के साथ खेलकर और जीनी है
.
और यारों... उसने कभी लगाया है नहीं.. गुलाब का इत्र
उसकी महक तो चन्दन जैसी भीनी भीनी है
.
एक बेटा है के जिसकी ख्वाहिशें ही नहीं पूरी होती
उस बाप को तो अभी कमीज़ की जेब भी सीनी है
.
सारे जो बैठे थे महफ़िल में चले गए है उठकर
महावर लगाई है उसने पैरों में.. रफ्तार उसकी धीमी है
.
मुझे मिला था कल एक परिंदा बंधे पंखों के साथ
कहता था उसका शिकारी कोई और नहीं...एक कमीनी है
- अनचाही-
आज वक़्त लाज़मी नहीं
तो हर शक्स महफ़िल बदल रहा है
उगता सूरज मानो ..शाम होते होते ढल रहा है
हर कतरा अपना रंग बदल रहा है
पर !!
पर !!
कल दौर-ए-महफ़िल आयेगा
तब हम भी सबकी जान होंगे
मगर, मेरी जां, तुम्हारे असली रंग से
ना अनजान होंगे
तब हम कहां तुम पर भी
मेहरबान होंगे
तब हमारे भी कई
कद्रदान होंगे
पर...आज..आज वक़्त लाज़मी नहीं
- अनचाही
-
आज फिर तुझे याद करके
कुछ ख़्याल आए है
आज फिर अपनी कलम से
मैं तेरा नाम लिखूंगी
- अनचाही-