उम्मीदे तरस गई थी तेरी गिरफ में आने को ..
ये दिल है मेरा कि अब बिछड़ना नहीं चाहता...
तमाम उमर गुजारूंगा तेरे साथ ही...
अटल हूं इन शब्दों से कभी मुकरना नहीं चाहता...
मिज़ाज-ए-गुस्सा मयास्सर रहता है तेरे चेहरे पे तो अच्छा लगता है अब मुझे..
तेरे इस किरदार से अब मैं डरना नहीं चाहता...
तुम रहोगी साथ मेरे तो सबको दिखाऊंगा इश्क मेरा...
बिगड़ना चाहता हूं तेरे प्यार में इतना के फिर सुधरना नहीं चाहता..
रुखसार को देखता हूं जब तो तिल पर ध्यान जाता है..
जब मिलु तो छुलूंगा कभी..ये इरादा मैं अपना बदलना नहीं चाहता...
तेरी साहिर आँखों में पाई है मंजिल मैंने...
देख के तुम्हें उड़ना चाहता हूँ बस अब गिरना नहीं चाहता...❤️
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