जब कभी भी हम अपने बचपन की बातें सुनते हैं, तो लगता है काश! मैं अभी भी वैसा होता। वैसा ही शरारती, बेफिक्र, दुनिया के झंझटों से अनजान, एक सच्चे हृदय वाला निर्दोष भाव युक्त मासूम से बच्चे जैसा। बच्चे कितने प्यारे होते हैं न। कभी कभी सोचता हूँ कि हम अब भी वैसे क्यों नहीं है? हम चाहकर भी वैसे नहीं बन सकते। कितना अजीब है न! हम कितना भी प्रयास कर लें , वैसी ही मासूमियत और सच्चाई कभी हमारे जीवन में दुबारा नहीं आती। तब जीवन के अनुभव और जिम्मेदारियाँ मुझे इस बात का उत्तर दे जाती है। तब कुछ देर शांत होकर उन्हीं मासूम यादों का स्मरण करने लगता हूँ। कहते हैं कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं। उसी समय कुछ देर के लिए ही सही, एक आत्मिक प्रसन्नता का अनुभव होता है। क्योंकि उस समय हम जाने-अनजाने में ही भगवान से जुड़ रहे होते हैं। काश! हम हमेशा वैसे होते....
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