न हो ज़रूरत उसे किसी और सहारे की,
मैं इतना क़रीब उसका साया बन जाना चाहती हूँ,
वो जो सबका है, पर खुद के लिए नहीं,
मैं उसका ‘खुद’ बन जाना चाहती हूँ।
हां कुछ इस कदर मैं मोहब्बत निभाना चाहती हूं....
-
और लोग उसे शायरी समझते रहे।
हूं हवा हाथ नहीं आऊंगी
हाथ आकर बेपनाह मुठ्ठी से निकल जाऊंगी
मुझे पकड़ने की ख्वाहिश बेवकूफी है मेरे दोस्त
मैं वो खुशबू हूं जो सांसों में समा जाऊंगी।
-
पिता ने देखी समझदार बेटी,
माँ ने देखी कुछ बेपरवाही।
ज़माने ने देखी एक मज़बूत महिला,
पर सहेलियों के हिस्से आया —
मेरा टूटा मन, मेरी जागती रातें।
संभाल ले गईं वो मेरा बिखरा हुआ हृदय,
कभी हँसी से, तो कभी सांत्वना से,
तो कभी सीने से लगाकर —
मेरी ख़ामोशियों को ऐसे पढ़ा,
जैसे दर्द एक-सा हो, किरदार बस बदलते जाएँ।
किसी ने दावा किया 'ख़ून' के रिश्ते का,
तो किसी ने हक जताया 'अपने होने' का।
एक वो थी —
जो बिना किसी दावे के,
हर तूफ़ान से मुझे बचाती रही।-
हर इल्ज़ाम हमने अपने सर लिया,
तुझे ग़लत कहना दिल को मंज़ूर न था।
तेरी हर बेरुख़ी को सब्र का नाम दिया,
क्यूँकि तुझसे कोई शिकवा मन्ज़ूर न था।
तेरे झूठ भी सच लगे दिल को मेरे,
इश्क़ में हक़-ओ-बातिल का दस्तूर न था।
लोग कहते रहे तू बेवफ़ा निकला
पर मेरी नज़रों में तेरा कसूर न था।
टूट कर भी तुझसे मोहब्बत रही,
क्यूँकि इस दिल को कोई और न मंज़ूर था।-
वो समझते हैं, बड़ी बेपरवाह हूं मैं,
पर अपनी फिक्र उन्हें दिखाऊं भी तो कैसे।
मेरी हल्की सी खामोशी तोड़ देती है उन्हें,
फिर अपना हाल सुनाऊं भी तो कैसे।
जो दिखती हूं हँसती, वो आदत सी बन गई है,
इस दिल की थकन जताऊं भी तो कैसे।
वो मेरी आंखों में सब पढ़ लेते हैं मगर,
इन अश्कों को बहाऊं भी तो कैसे।
कभी जो करीब आएँ, तो सब कह दूँ शायद,
मगर ये फासले मिटाऊं भी तो कैसे।
उन्हें हर दर्द से महफूज़ रखना है मुझे,
और खुद को भूला पाऊं भी तो कैसे।
-
भुला दूँ तुम्हें?"
सब कहते हैं —
भुला दो उसे, बीते कल की तरह..
पर कैसे समझाऊँ उन्हें
कि भुलाने की कतार में
तुम सबसे अंत में खड़े हो —
सबसे अलग, सबसे खास।
तुम्हें भुलाने से पहले
मुझे भूलना होगा मेरा मासूम बचपन,
जो तुम्हारे साथ बिताया था।
मुझे भूलना होगा फिर मिलने का वो वादा,
जो आँखों ने बिना शब्दों के निभाने का ठाना था।
मुझे त्यागने होंगे वो पल जो तेरे साथ बीते —
वो मुस्कानें, वो चुप्पियाँ, वो नादानियाँ
जो अब यादों की धड़कनों में बसती हैं।
मुझे मिटाने होंगे वो सारे रंग
जो तेरी मौजूदगी में जीवन ने पहने थे।
पर अगर ये सब मैं भूल गई...
तो फिर बचूंगी कहाँ मैं?
अगर तुझसे किनारा कर लिया,
तो शायद खुद से भी जुदा हो जाऊँ।
और खुद को खोकर कोई कैसे जी सकता है...?
-
सजने संवरने की आदत नहीं है मेरी,
क्या तुम मेरी सादगी से मोहब्बत कर पाओगे।
वफादारी के अलावा कुछ नहीं है देने को,
क्या तुम सिर्फ इसी वजह से मुझे चाह पाओगें।
मुझे आदत नहीं है चकाचौंध की,
क्या तुम मेरे साथ भीड़ में कहीं गुम हो जाओगे।
मुझे तो बस तुम्हारा होना पसंद हैं,
क्या तुम मुझे बिना सर्त अपनाओगे।
-
उलझ गई हूं उलझनों में,
आकर इन्हे सुलझाओ ना..
थक गई हूं भागते भागते,
आकर अपने गोद में सुलाओं ना...
नहीं संभलती मुझसे मुश्किलें
अब तुम्हीं रास्ता बताओ ना...
तेरे होते किस ओर हाथ बढ़ाऊ मै
बाबा तुम्हीं आकर मुझे थाम लो ना..🙏
-
यूं तो कई फूल थे उसके बागान में
मगर निहारती थी वो
किताबों के बीच रखे एक सुखे फूल को
मानो वही आखरी फूल हो जहान में।
-