Unjust Voice   (Creative mind (Shilv))
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Joined 20 October 2019


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31 MAR AT 20:28

ज़िंदगी अब मुरझा सी रही है..;
लगता है..,
जनाजे को कफ़न मिल गई..!

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14 FEB AT 23:49

,
बेवजह रहा..!
न विश्वास रहा,
न खुशियां रही..!

रिश्ते तो रहे,
पर अपनापन न रहा..!

जिंदगी भर का साथ,
बेवजह रहा..!

दुःख रहा..
दर्द रहा..,
जिंदगी भर का साथ,
हमदर्द का नमक बना रहा..!

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14 FEB AT 23:36

,
अधूरा रहा..!

कभी तुम रहे,
तो हम ना रहें..!
कभी हम रहें,
तो तुम ना रहें..!

कभी हम दोनों रहें..
और कभी,
हम दोनों का नामो निशान न रहा..!

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12 JAN AT 22:08

बढ़ रही है बेवजह वहम्
सूना सा है हृदय मेरा..
आद्र नयन न आए नीर..!
हाथों कंगन उदासी है
अध्रो रहित मुस्कान
कैसे भरे ये खालीपन
जब प्रियतम ही न हो पास..!!

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2 JAN AT 18:57

नज़र झुक गई..!
जब उनकी नज़र
से नज़र मिल गई..!
फिर नज़र उठी
नज़र मिली,
फिर शर्मा के नज़र
से नज़र झुक गई..!
नज़रों के नज़र से मिलना
और नज़र के नज़र से झुक जाना
ये नज़रों की कैसी रूहानी थी..!
छुप छुप कर मिलना
या मिल मिल कर छुपना
क्या..? यहीं प्रेम कहानी थी..!

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5 DEC 2023 AT 20:14

दृष्टि में उपजे छवि से,
जो निरंतर बदलती रहती है..
आकाश में उपजे मेघों की भाती..!
कभी अकार देती हैं,
विचरते अश्वों, गजों की
तो कभी रूप ले लेती हैं,
गर्जन करते सिहों की..!!
कभी सूर्य को छिपा लेते हैं, आचलों में,
एक मां की भाती..
तो कभी स्वयं छट जाते हैं,
दृष्टि के सम्मुख से..!
प्रतिपल स्वरतें रहते हैं, जलधर..;
मन में पलते भ्रमों से..
कभी बरस जाते हैं,
अश्रु की भाती..
तो कभी सिमट जाते हैं,
अध्रों की भाती..!!

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24 NOV 2023 AT 10:15

जो स्वयं को निर्धारित कर चले
पल पल समय व्यतीत होता
सुख -दुःख की अल्हड़ राग लिए,
आखों में दीवा स्वप्न संजोए
जिंदगी की गीत गुनगुनाए..!

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10 NOV 2023 AT 22:02

इन ख्वाबों में,
क्यूंकि हकीकत तो कुछ और ही होता है..!

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30 OCT 2023 AT 21:59

परिंदा शाख पर न रहा..
शाख तो रहा मगर
अब परिंदा न रहा।

कुछ आसमान नीले हैं,
कुछ बादल भूरे हैं..
नीले-भूरे इन रंगों के बीच
दिल से अब इंसान भी काले हैं।

सफ़र में जीवन,
जीवन में कई रिश्ते हैं..
रिश्तों की भी अपनी अहमियत है
कुछ रिश्ते आंखों में तो
कुछ रिश्ते अब भी वृद्धा आश्रम में पलते हैं।

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28 OCT 2023 AT 22:15

मन में आस जलाएं रखना..
हो प्रज्वलित ज्योत ऐसा,
जो स्वयं अफताब को जलाएगा
शांत चित्त सौम्य प्रभा
धधकती ज्वाला,
अंधकार को मिटाएगा ।
जब पूर्णिमा की सारंग को
ग्रहण अमावस बन केतु लगाएगा,
तब स्वयं लेखक बन
लेखनी से समाज की कुरीतियों
को मिटाएंगे..
परिस्थितियां जो भी हों,
उम्मीद की रौशनी बनके
जग - जन-जन में प्रकाश के पुंज को फैलाऊंगा,
जब अंधेरा घना हो
तो स्वयं को सूर्य सा जलाएंगे..!!

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