Unjust Voice   (Creative mind (Shilv))
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Joined 20 October 2019


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26 DEC 2024 AT 19:41

एक वक्त के बाद क्रोध,
पश्चाताप बन जाती है..
और शर्म निर्लज्जता..!

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18 NOV 2024 AT 17:28

आंखों में आंसू
पलकों की उदासी,
अध्रों की सरलता
अच्छादित न चितवन आनी..!
सोलह श्रृंगार यौवन धरी
पलक पांवड़े राह निहारी
बिन प्रियतम आलिंगन
तन नीरस लागी..!!

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15 AUG 2024 AT 6:58

🧡🤍💚
ए वतन,
लिखूं भी तो क्या लिखूं..
तेरे सजदे..!

मैं कफ़न लिखूं..
तू तिरंगा समझना..!!
🇮🇳🇮🇳🇮🇳

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31 MAR 2024 AT 20:28

ज़िंदगी अब मुरझा सी रही है..;
लगता है..,
जनाजे को कफ़न मिल गई..!

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14 FEB 2024 AT 23:49

,
बेवजह रहा..!
न विश्वास रहा,
न खुशियां रही..!

रिश्ते तो रहे,
पर अपनापन न रहा..!

जिंदगी भर का साथ,
बेवजह रहा..!

दुःख रहा..
दर्द रहा..,
जिंदगी भर का साथ,
हमदर्द का नमक बना रहा..!

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14 FEB 2024 AT 23:36

,
अधूरा रहा..!

कभी तुम रहे,
तो हम ना रहें..!
कभी हम रहें,
तो तुम ना रहें..!

कभी हम दोनों रहें..
और कभी,
हम दोनों का नामो निशान न रहा..!

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12 JAN 2024 AT 22:08

बढ़ रही है बेवजह वहम्
सूना सा है हृदय मेरा..
आद्र नयन न आए नीर..!
हाथों कंगन उदासी है
अध्रो रहित मुस्कान
कैसे भरे ये खालीपन
जब प्रियतम ही न हो पास..!!

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2 JAN 2024 AT 18:57

नज़र झुक गई..!
जब उनकी नज़र
से नज़र मिल गई..!
फिर नज़र उठी
नज़र मिली,
फिर शर्मा के नज़र
से नज़र झुक गई..!
नज़रों के नज़र से मिलना
और नज़र के नज़र से झुक जाना
ये नज़रों की कैसी रूहानी थी..!
छुप छुप कर मिलना
या मिल मिल कर छुपना
क्या..? यहीं प्रेम कहानी थी..!

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5 DEC 2023 AT 20:14

दृष्टि में उपजे छवि से,
जो निरंतर बदलती रहती है..
आकाश में उपजे मेघों की भाती..!
कभी अकार देती हैं,
विचरते अश्वों, गजों की
तो कभी रूप ले लेती हैं,
गर्जन करते सिहों की..!!
कभी सूर्य को छिपा लेते हैं, आचलों में,
एक मां की भाती..
तो कभी स्वयं छट जाते हैं,
दृष्टि के सम्मुख से..!
प्रतिपल स्वरतें रहते हैं, जलधर..;
मन में पलते भ्रमों से..
कभी बरस जाते हैं,
अश्रु की भाती..
तो कभी सिमट जाते हैं,
अध्रों की भाती..!!

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24 NOV 2023 AT 10:15

जो स्वयं को निर्धारित कर चले
पल पल समय व्यतीत होता
सुख -दुःख की अल्हड़ राग लिए,
आखों में दीवा स्वप्न संजोए
जिंदगी की गीत गुनगुनाए..!

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