औरतों का ट्रेन और बसों की खिड़की वाली सीट पे
बैठ के रोना, ये दर्शाता हैं कि रोने की क्रिया अकेले में करना उन्हें भी आता हैं
चुप चाप से गिरते हुए आसुंओ को गालों तक आने से पहले कठोरता से पोछना, सिसकियों को दबा कर आवाज न किया लंबी सांस लेने की कोशिश करना
और स्टेशन आने से पहले अपना चेहरा बाल ठीक कर ऐसे उतार जाना जैसे कुछ हुआ ही नहीं
कोई रोई अपने घर के तंगी से, कोई पति / बॉयफ्रेंड के बात्सालुकी से और कोई ज़माने से तक हारकर एक लड़ाई को हारते देख दूसरी पर निकलने पर
ऐसे कई सफर पूरे हुए है अधूरेपन के साथ
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