नदिया ने सोचा,
'और भला उपाय ही क्या है?
ठहर कर समंदर के इंतजार में
यूं ही वक्त थोड़ी गंवाएंगे।'-
तुम्हारी जिंदगी बेस्वाद सी है,
यकीन ना हो तो
नजर डालो तमाम उलझनों पर,
ना किसी गम को दिया वक्त,
ना रही खुशियों में ही शामिल..
डर के साए में छिपी रह कर
और कब तक घुटन सह पाओगी?
क्या स्वादभरी जिंदगी से मिलना नहीं चाहोगी?
हां! ये मुमकिन है।
सिर्फ तब, जब डर के साए से बाहर आ जाओगी।-
ये बात फिक्र की नहीं है..
बिल्कुल भी नहीं,
यूं ही एक दिन खुद से बातें हुईं,
फिर समझ आया कि कभी कुछ भी
पूरा होते तो देखा ही नहीं,
जब से ये बात समझ आई है..
ना किसी शख्स से शिकायत रही,
ना हालात से,
और ना ही खुद से..-
कि सफर में कहीं रुक जाऊं,
जीवनपर्यंत चलते रहना
किस्मत कम फितरत ज्यादा है,
अब और भला
मैं क्या लिखूं..
क्या सोचूं,
क्या चाहूं?-
कुछ पता नहीं कि क्या होगा,
उम्मीद का सूरज गुम सा है,
सन्नाटे के साए में डराती
काली अंधेरी रात है,
मगर इस रात से भी ज्यादा जिद्दी
कोई है भीतर जो बागी है,
जिसे रुक जाना मंजूर नहीं,
जो संघर्षों का आदी है।-
no words around, just silence,
much needed and known privacy,
the couple, lost in each other's presence.-
The little kid in me exist,
Questioning everything around,
Unlocking the hidden mysteries.
-
खट्टी मीठी यादें जैसे नींबू वाली चाय,
आंखों के इशारे पढ़ कर दिल बहका सा जाए,
मौसम के रंगों में घुल गई इश्क की खुशबू ख़ास
हर बीते लम्हे में है बस पिया मिलन की आस!-