कम आखिर कितना ही कम है
क्यूँ दिल डूबा है और आखें नम हैं
क्यू नहीं बोल रहे मेरे लब
क्यू दिल की आँच इतनी मद्धम है
कम आखिर कितना ही कम है।
क्यूँ ना थोड़ा मैं मुस्कालूं
सपनों की फिर पौध लगालूं
कुछ विश्वास की खाद मैं डालूं
क्यूं ना दिल की बगिया फिर महका लूं।
क्यूँ दिल डूबा है और आखें नम हैं
कम आखिर कितना ही कम है।।
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