समझ नहीं आता कि तुझे देखूं,
या देखूं तेरी बनावट को...
नज़र हटाऊं कैसे इस 'हुस्न-ए-अदा' से,
जब हर ख़म में तेरी क़यामत सी झलक है।-
I’m just limited edition...🙃
And Tea Lover 😋☕
वो फ़लक भी मेरा होगा,
ये ज़मीं भी मेरी होगी ।
मेरी जद्दोजहद का कुछ यूँ असर होगा,
मेरे फ़न में भीगी आरज़ूओं की नक़्शगारी होगी ।
कामयाबी की फेहरिस्त तो जाने कितनों की बनेगी,
मेरी अखबारों में इश्तेहारों से इतर,
एक कामिल कहानी बनेगी ।-
ये शाम-ए-फ़िराक़त मिरे सर से टलती नहीं अब तक, सीने में इक ज़ख्म है तेरी याद का जो भरता नहीं अब तक।
इक टूटी हुई उम्मीद है जो जुड़ती नहीं अब तक,
तेरा वो नक़्श निगाहों से हटता नहीं अब तक।
ये आलम-ए-तन्हाई है जो बदलता नहीं अब तक,
और इस दर्द से ये जान निकलती नहीं अब तक ।-
दरिया के इस पार, तन्हा भी तो रह सकता था ।
दिल का हर ग़म करीब से भी, तो कह सकता था ।।
ये हिज्र का मौसम, थोड़ा आसान हो सकता था ।
कम से कम ये दर्द दरिया संग बह सकता था ।।-
शहर शहर की इस दौड़ में,
ये जिंदगी सूकुन खो रही है...
देखा है उदास पहले भी इसको,
पर अब ये कुछ और हो रही है...-
ये आम सी शाम, आज खास क्यूं है !
तू है नहीं पास, फिर तेरा एहसास क्यूं है !
क्यूं है, ये क़ल्ब में शोर इतना...
है हक़ीक़त का फ़हम इसको फिर,
हो ना रहा एहसास क्यूं है !-
ये गम छुपाने को,
मुस्कुराने का ख़्याल अच्छा है...
उन्हेें भी थी मोहब्बत ।
या, थी मोहब्बत उन्हें !!
अब खुद से, यह सवाल अच्छा है...-
किसी रोज़ हो ज़ियारत उनके,
था तब बस इतना सा खयाल मेरा...
मिले जो, तो पूछना ज़रूर शफ़ीक़,
कि... थी मोहब्बत सच में, या यूं ही...!!
है अब बस इतना सा सवाल मेरा...-