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वक़्त किताब के पन्नो सा बदल रहा है.
अंको का जोड़ होते हुए, दोहरे कुल मै आगे बढ़ रहा है.
मै आज भी उसी चोहराए पर खड़ा हू, देख तुम्हारा रास्ता.
ना जाने क्यों तुम्हारा साया भी छुप गया है-
गुमशुदा सी मोहब्बत आज भी कर रहा हूं मैं
खुद के जलाए इश्क के पन्नो की आग में आज भी जी रहा हूं मैं
कैसा इंसान हूं अपनी तस्वीर को ही धोखा दे रहा हूं मैं
साथ में बैठ किसी और के शायरी तुम्हारी कर मैं गुमशुदा सी मोहब्बत आज भी कर रहा हूं मैं-
रात की सड़को पर मै दिल्ली
खुदा की पलकों पर जीति मै दिल्ली
हु मै बड़ी बतमीज़ सी कहते लोग है मुझे दिल्ली
बोहोत छोटी और सस्ती सी लगती हु मै दिल्ली. एहसान तले जी रही ऐसा कहते मुझे हु मै दिल्ली
मगर आज भी देश का ताज मै दिल्ली-
ज़ख्मो से जी रहे हम, दिखावे का मलहम लगाते है लोग.
तुम्हारे लिए हमेशा खड़ा हू ऐसे कुछ, ज़िन्दगी की आस बनाते है लोग.
कह कर तुम्हे अपना सब कुछ, दुरिओ का अहसास दिलाते ही लोग.
फिर; मै तू और तू में हु, का बेहिसाब आइना दिखाते है लोग.
तुम्हे हमेशा अपना सब से अच्छा यार बताते है लोग-
गुमनाम मोहब्बत नही होनी चाहिए, वरना
एहसास-ए-जिंदगी निःशब्द हो जाती है-
वक़्त के मुसाफिरों से कैसी उम्मीद करूँ, ये समाये की घडी से बदल जाते है
उनसे नफरत कैसे करूँ, खुद के ज़मीर पर यकीन नही
रस्ते ना जाने कैसे है हमारे,
उसके आने की राह कैसे ताकू, मेरी खुद की जब कोई मंज़िल नहीं-
When you start complaining or explaining your experience, you will start redeeming your success where in furture you have nothing to achieve
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BAPU
नही रखा हाथ सर पे उस रात के बाद किसी ने, जब देखा था आपको आखरी बार
ना मै उम्मीद करू ना रखु भरोसा, जैसे कहा था अपने आज भी याद है वो बात-
Ye jo tum apni zindagi ki tasvir me aag laga rahe ho
Kya jaante bhi ho sath tumhare tum kitne dillo ko jaala rahe ho-