उमेश लखपति हनुमान   (#UMESH_LAKHAPATI'KrishnA)
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Joined 3 October 2017


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Joined 3 October 2017

से तबियत साज होती थी,
एक तेरे से ही जिंदगानी में आवाज़ होती थी,
मैं यूं ही लुटता रहा उन बेईमानो के भरोसे में "कृष्णा",
जिनके लिए कभी मेरी कोशिशें जाबांज होती थी।

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कब साथ छोड़ दे।
कुछ पता नहीं जिंदगानी कब मुंह मोड़ ले,
रहे सदा वसंती पल,इसका क्या पता,
सांसों के मोती की माला जाने,कब यम तोड़ ले।

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नादान हूं मैं मुझको समझदारी नहीं आती,
ये दुनियां सिखाती रहती है ऊसूल नए नए,
रहते हैं खुश मस्तमौला है हम,
हमें ज़माने सी मक्कारी नहीं आती।

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कितनी यादें बिखरी पड़ी है,
तकरार हो रही है,यह कसौटी की घड़ी है।
भूल ना जाना तुम,मुझको,मेरी चाहत को,
ये जेठ की दुपहरी है,आगे सावन की झड़ी है।

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दरवाजा 💗तहखाने का खोला तो,
पाया के वहां हो 😍तुम,
जहां नहीं कोई तेरे सिवा,
एक तुम ही तो हो,
जो टटोलती रहती हो मेरे ✨सपनों को,
दुलारती रहती हो मेरे अपनों को,
💫ख़्वाब तो पूरा हो,
कुछ भी ना अधूरा हो।।

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कितने गैर जरूरी हैं हम ये बताता है,
ना किसी के पास रहे,ना किसी के खास रहे,
हम,
खो रहे हैं वजूद अपना धीरे धीरे,
मतलबी जमाना और क्या चाहता है,
हां मगर ख्याल अब भी तुम्हारा आता है,
ना जाने दिल ये अब भी क्या चाहता है??
अब चैन कहां आता है,
हां अकेलापन सताता है.......

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लिखना मेरी आदत है,
कलम मेरी साज है, शब्दों से मेरी इबादत है,
रचनाओं में सार है,गौर से पढ़ो तो संसार है,
कलमकार भी अपनी कला से करता सबका स्वागत है।

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हां
लबों पे हंसी ना थी,
आंखों में नमी थी,
और,
सर पे था पूरा आसमां,
कदमों तले जमीं ना थी,
उड़ रहे थे हवा में,
सब कुछ तो था,
कुछ भी कमी ना थी,

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बिखरी हुई खुशियों को समेट कर संवार दो,
रिश्तों की रखों इज्जत,सबको प्यार दुलार दो।
ज़िंदगी का क्या भरोसा अब कुछ पता नहीं,
बैरंग जिंदगानी में तुम सबको वसंत बहार दो।।

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यूं ही रूठ जाना किसी से,
भले कोई खूबी ना मुझमें,
मगर ये खामी भी नहीं मुझमें,
मुझे पसंद सबसे मुस्कारके बोलना,
मुझे नहीं आता किसी को मक्खन लगाना,
और अपना काम निकलवाना किसी से।।

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