जीत कर भी मैं जीत न सका
तुम हार कर भी कभी न हारी
ये हिसाब ए इश्क़ है जनाब चित भी तेरी और पट भी तेरी-
दो पंक्तियों... read more
अजीब दास्तां है ये ज़िन्दगी ,
के
ज़िंदा रहना भी है तो उस शख्श के लिए जिसकी बेरुखी हर पल मौत सा एहसास करवाती हैं ...
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बार-बार पलकों को अपनी झुकाए कौन,
उदासी भरे चेहरे से मुस्कुराए कौन...
बिस्तर, गादी, तकिये, रज़ाई सभी के सभी बेशकीमती हैं,
बस सुकून से इन आँखों को मूंदने की क़ीमत चुकाए कौन ...
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बस वही हादसा और एक बार हो जाए
हमने कब चाहा के तू भी मेरा तलबगार हो जाए
दुनिया कि चाहत किसे रह गई अब
बस मौत से पहले तुझ पर मेरा कुछ तुझ पर उधार हो जाए
मुस्कुरा कर देख लिया कर पलकें भर उठा कर एक बार
कौन चाहता है के तुझे भी हम से, हम ही सा,प्यार हो जाए
बस यही एक चाह दबी हुई है दिल में
हर सुबह आँख खुले और इन आँखों को (तेरा) दीदार हो जाए-
यादे तुम्हारी मुझे अक्सर सोने नही देती,
लाख चाह लूँ किसी और का मुझे होने नही देती ।
अंदर सैलाब भरा है आँसुओ का, पर चाह कर भी वो सैलाब दिखाउ कैसे इस दुनिया को
अरे तू तो दूर हो गई लेकिन हर कदम साया बन कर साथ रहने वाली, माँ मुझे दुनिया के सामने कभी रोने नही देती।।-
कहानियाँ लिखता हूँ
कविताए भी और कभी कभी इतिहास लिखता हूँ मैं
कभी आम तो कभी कुछ खास लिखता हूँ
मैं तो सीधा साधा कबाड़ी हूँ साहब
आप ही से मिली जज़्बातों की दवात मे...
अपने दिल की कलम भिगो कर
आप हीे के लिए चंद अल्फाज़ लिखता हूँ मैं...-
जलते हुए चरागों को
अब हमने बुझाना छोड़ दिया हैं...
नींद आ जाया करती है इंतज़ार में तुम्हारे
हमने सोते हुए हम को जगाना छोड़ दिया है...
अक्सर मिलने वाले बताया करते है, के
तुम्हारी यादें उसे इंदौर आने नहीं देती...
अरे कोई जाए, जाकर बताएं उसे
के यादों से बचते बचते तेरी उमंग ने ज़माना छोड़ दिया है
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ज़िन्दगी दोषहीन हो जरूरी तो नहीं
के , तेरी - मेरी मुलाकात भी तो एक हादसा ही थी...-
यूं तो घाव हजारों मिलते हैं ज़िन्दगी में
लेकिन चोट तो किसी अपने के वार से ही लगती है-