Uma  
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Joined 25 August 2018


Joined 25 August 2018
7 AUG 2021 AT 12:09

फ़क़त है सच वही जहान में दिखे जो आंखों से
परे जो आंखों के मेरी, है झूठ सब, फ़रेब है

तू एक ऐसा मोजज़ा कि आ गया हमें यक़ीं
नहीं तो मानते थे ये ख़ुदा-ओ-रब फ़रेब है

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7 AUG 2021 AT 10:39

बसाया उसे जब से आंखों में अपनी
मुक़म्मल हुए सारे श्रृंगार मेरे

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8 JAN 2021 AT 3:42

हूॅं नहीं अब मैं ज़रा भी, मुझमें है अंजान कोई
इक क़फ़स है जिस्म जिसमें रूह है बेजान कोई

मर गई ज़िंदा-दिली, खाती हॅंसी अफ़्सुर्दगी और
ख़ाक ख़्वाब-ओ-ख़्वाहिशों का क़ल्ब है शमशान कोई

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4 DEC 2020 AT 11:07

किसी ने कहा- है ख़ुदा हर किसी में
ख़ुदी को मैं तबसे ख़ुदा मानती हूॅं!

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22 OCT 2020 AT 0:00

...

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25 APR 2020 AT 1:06

शिकायत जो भी थी, होंठों पे तुम ला ही चुके हो ग़र
तो अब झगड़ा भी होना चाहिए होंठों से होंठों का

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6 AUG 2021 AT 15:28

कभी तो वो हमको ख़ुदा मानता है
तो पत्थर कभी राह का मानता है

उसे देखा-समझा है ता-ग़ौर फिर भी
पता ही नहीं है कि क्या मानता है

कभी कहता चुप्पी है सूरत-ए-इंकार
कभी ख़ामुशी को रज़ा मानता है

कभी घेरे महफ़ूज़ करते हैं उसको
कभी बाहों को वो कज़ा मानता है

भला माने या माने जो भी, फ़क़त वो
यूॅं ही, ऐसे ही, ख़ाॅं-म-ख़ाॅं मानता है

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29 JUN 2021 AT 0:15

जहाॅं सब ख़त्म-सा लगने लगा था
वहीं फिर लौट आना चाहते हैं

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2 JAN 2021 AT 22:50

कभी बर्फ़ में शोला जो फूटता है
मेरा मन भी तब लावे-सा खौलता है

कि उसके लबों पे पानी का ठहरना
मैं क्या ही कहूॅं, हय! गला सूखता है

दहकते हैं सीने में अरमान कितने
बहकती नज़र से वो जब देखता है

जगी प्यास उसको पूरा ही पी जाऊॅं
मगर दिल है के बारहा रोकता है

हॅंसे देख के हाल मेरा वो ज़ालिम
हॅंसी से अलग एक धुन छेड़ता है

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23 DEC 2020 AT 22:25

जले रूह और दिल लगातार मेरे
इनायत ज़रा-सी हो सरकार मेरे

शिकायत भला क्या हो दिलदार से अब
ख़तावार तो बस हैं अफ़्कार मेरे

मेरी धड़कनें, जान, साॅंसें, जिगर
ये ही हैं यहाॅं पे गुनहगार मेरे

लो टुकड़े पड़े हैं, बुलाओ, ले जाएं
कहाॅं हैं किधर हैं जो हक़दार मेरे

गला सूखता है, ग़ज़ब है सितम जब
रहे भींगे-भींगे से अबसार मेरे

अजब कालिमा दिल में बिखरी पड़ी है
कि दिल में है कालिख का अम्बार मेरे

मिला उम्र भर दर्द ही, अब तो मालिक
हो हमदर्द ज़्यादा न दो-चार मेरे

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