जले रूह और दिल लगातार मेरे
इनायत ज़रा-सी हो सरकार मेरे
शिकायत भला क्या हो दिलदार से अब
ख़तावार तो बस हैं अफ़्कार मेरे
मेरी धड़कनें, जान, साॅंसें, जिगर
ये ही हैं यहाॅं पे गुनहगार मेरे
लो टुकड़े पड़े हैं, बुलाओ, ले जाएं
कहाॅं हैं किधर हैं जो हक़दार मेरे
गला सूखता है, ग़ज़ब है सितम जब
रहे भींगे-भींगे से अबसार मेरे
अजब कालिमा दिल में बिखरी पड़ी है
कि दिल में है कालिख का अम्बार मेरे
मिला उम्र भर दर्द ही, अब तो मालिक
हो हमदर्द ज़्यादा न दो-चार मेरे
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