Uma Manya   (मनके मन के📝(Uma manya))
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Joined 28 April 2019


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24 JUN 2022 AT 2:15

कर चुके बंटवारा.....
चालाकी काम आई....
खरीद लाये नींद,खरीद लाये सुकून!
अच्छा है....
एक दिन तुम्हारा भी बंटवारा होगा!
चाट जायेगा आसमान अपना हिस्सा,
सोख जायेगी जमीन अपना हिस्सा,
उड़ा ले जायेगी हवा अपना हिस्सा,
निगल जायेगी नदी अपना हिस्सा,
लेकर अपना अंश धू धू करती अग्नि...
शांत हो जायेगी!
शेष रह जायेंगे तुम्हारे कर्म....
भर कर उसे भी रखा जायेगा द्योढ़ी के बाहर...
सब पैर पखार लेंगे...बस सब खत्म....

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1 JUN 2022 AT 19:55

दूर बहुत दूर तक निकल आई हूँ
हाँ जंगल झाड़ी नदियाँ पहाड़ी
सब पार कर आ पहुंची हूँ
रेगिस्तान में.....
भटक रही हूँ मृग मारिचिका में
बस एक बूँद कविता के लिए...
सच......

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23 JAN 2022 AT 1:35

चुनना चाहती हूँ
एक रंग
नीला.....
लिखना चाहती हूँ
एक शब्द
आसमानी.....

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29 NOV 2021 AT 23:48

तुम "गुनगुनी धूप"
हो जैसे....
पत्तों पर चुपचाप बैठी, "ओंस की बूँद"
हो जैसे....
न कोई शोर,न आहट
बस ज़रा सी नमी,ज़रा सी गरमाहट!
खोलकर पलकों की साकल,
बिखेर देते हो कपोलों पर गुलाल,
होठों पर सुर्ख रंग लाल!
और छोड़ जाते हो मन के आँगन में
अपलक इंतज़ार...

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4 OCT 2021 AT 18:27

एक जोड़ी चप्पल!!
जो पड़ी रहती थी
अपनी जगह पर सलीके से ....
निकली थी घर से
कुछ जल्दबाज़ी में,
अब नज़र नहीं आती
और उसे कोई ढूढ़ता भी नहीं!!
कुछ कपड़े,धुले क़लफ और स्त्री किए हुए
आलमारी के खुलते ही मुस्कराने लगते थे..
अब बुझे -बुझे से लगते हैं!!
मेज की अंतिम दराज में पड़ी
एक कंघी और एक आईना
जो खिले -खिले लगते थे...
धुंधले गंदले से लग रहे,इस्तेमाल में नहीं शायद!!
एक मुस्कुराता हुआ चेहरा
जो आवाज़ देता था मुझे...
अब वो शांत हो
एक टक मेरी ओर देखता है!!
जैसे कहानी खत्म होते ही
बंद हो जाती है कोई किताब...
छोड़कर कुछ सवाल...कुछ जवाब...

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25 SEP 2021 AT 19:05

बिखरे जो टूटकर मनके मन के
सावन में जैसे बादल से बूंदे बरसे
स्नेह के धागों में गुंथना तो होगा
देकर जीवन उठना तो होगा
पग छोटे ही हों बेशक़
चलना तो होगा....




पूरी कविता अनुशीर्षक में.....

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12 MAR 2021 AT 18:04

चट्टान सी संवेदनाएं,
जब तजुर्बे की तपिश से पिघलती हैं...
स्याही जीस्त के पन्नों पर बिखरती है...
यूँ ही किसी की जिंदगी किताब नहीं होती !!

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10 MAR 2021 AT 12:47

बहती हैं नदियाँ, समंदर बहा नही करते !
गम को आसरा देने वाले,कुछ कहा नहीं करते !!

बहते हैं पत्ते, जड़ हवाओं संग बहा नहीं करते !
गिरने वाले नज़रों से,दिल में रहा नहीं करते !!

बहती है मिट्टी, चट्टान बहा नहीं करते !
मुश्किलों में मुस्कुराने वाले,कभी ढहा नहीं करते !!

बहते हैं जुगनू, आफ़ताब बहा नहीं करते !
मुँह चुराने वाले, जिंदगी से वफ़ा नहीं करते !!

बहती हैं आवाजें, अहसास बहा नहीं करते !
कोई सुनने वाला न हो तो, अफ़साना कहा नहीं करते !!

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9 MAR 2021 AT 0:55

पर भी तू परवाज़ भी तू
उडु भी तू आकाश भी तू

तू धारा नदिया की अविरल
पंथ भी तू प्रयास भी तू

कहती कलियाँ कपोलों की
सुरभि भी तू सुवास भी तू

तू बदरी जीवन प्रांगण की
बूँद भी तू पिपास भी तू

तू प्राण वायु मूर्धन्य चेतना
अरुण की अरुणिम आच्छाद भी तू

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15 FEB 2021 AT 11:22

Step into life
with prudency and grace...
Life is
just a journey, not a race...

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