तुम्हें भुला दूँ यूँ ही मैं
कोई सपना नहीं हो तुम,
तुम्हें बदल दूँ यूँ ही मैं
कोई आदत नहीं हो तुम;
तुम्हें छोड़ दूँ यूँ ही मैं
कोई रास्ता नहीं हो तुम,
तुम्हें हार जाऊँ यूँ ही मैं
कोई बाज़ी नहीं हो तुम;
हर पल जो संग रहे
वो रब की दुआ हो तुम,
मेरी खुशी से ही खुश रहो
मेरे माँ और पिता हो तुम..!!
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तुम्हारी बेटी
हर एक दर्द तुमको को बताने वाली
चुप सी कोने में बैठी रो रही है,
देखो माँ! तुम्हारी बेटी
कितनी समझदार हो रही है!!
हर चोट पर तुमको बुलाने वाली
हर घाव खुद में डुबो रही है,
देखो माँ! तुम्हारी बेटी
कितनी समझदार हो रही है!!
कहना तो चाहती है तुमसे सब
पर कहने की हिम्मत खो रही है,
देखो माँ! तुम्हारी बेटी
कितनी समझदार हो रही है!!
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कोई नहीं कर पाता किसी की कमी पूरी
बस खुद से धोखा किये जा रहे हैं;
भला रुह की कमी कोई पूरी कर पाया है
बस फर्ज की खातिर जिये जा रहें हैं!!-
सगाई
पहली बार मिले थे हम,
जब बैठे थे सामने तुम,
तारीफ तुम्हारी सुनकर ही,
इक नज़र मैंने उठाई थी;
हाँ! उस दिन हुई सगाई थी!!
न तुमने देखा था मुझको,
न मैंने देखा था तुमको,
बिन जाने ही मैंने तुमको,
यूँ ही आवाज लगाई थी;
हाँ! उस दिन हुई सगाई थी!!
फिर हुआ सिलसिला रस्मों का,
आना जाना फिर अपनों का,
बिन देखे ही इक-दूजे को,
हमने तस्वीर खिंचाई थी;
हाँ! उस दिन हुई सगाई थी!!
पहली बार तेरी मुस्कान दिखी,
मुझे अपनी उसमें जान दिखी,
काँपते हाथों से मैंने अपने,
तुम्हें अँगूठी पहनाई थी;
हाँ! उस दिन हुई सगाई थी!!
बिन जाने, बिन पहचानें ही,
मैं तेरी हुई, तुम मेरे हुए,
जाते-जाते जो मुड़े थे तुम,
आँखों से हाँमी आई थी;
हाँ! उस दिन हुई सगाई थी!!-
एक पिता..!!
करता है विदा अपनी बेटी खुद को संभाल कर...
चीर कर कलेजा देता है अपना दिल निकाल कर..!!-
Ik dafa ki mulaqaat mein saat janmo ki apni pehnchaan hui hai...
Yeh jo dor bandhi hai apne rishte ki meri jaan tere naam hui hai...-
Itna aasan nahi hota hai kisi ki fitrat ko samajhna
Yahaan har koi khud mein ek raaz dabaaye baitha hai
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Jab tak anjaan the hamaare haalaton se,
Tab toh haal pucha karte the hamaara...
Aur ab jab haal bata diya,
To unhe mera khayal bhi ni aaya dubaara...
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क़रीब हो तुम तो तन्हाई भी महफ़िल सी लगती है हमें
वर्ना तो महफिलों में भी अक्सर तन्हा मिल जायेंगे हम तुम्हें
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ऐहमियत
सवाल-ज़बाब मत कर इतनी तेरी क़बिलियत नहीं
ना दखल दे उसकी ज़िंदगी में इतनी तेरी ऐहमियत नहीं
तू हर दफ़ा उसके संग चले इतनी तुझे इजाज़त नहीं
ना दखल दे उसकी ज़िंदगी में इतनी तेरी ऐहमियत नहीं
तू खुद को समझे खुदा उसका सही ये तेरी नियत नहीं
ना दखल दे उसकी ज़िंदगी में इतनी तेरी ऐहमियत नहीं-