Ulfat Utkarsh Garg   (उल्फत🌿)
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Joined 1 July 2019


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Joined 1 July 2019
8 FEB 2022 AT 23:28

बड़े तक़दीर वाले लोग है वो
जो मोहब्बत से बिछड़ के मर जाते है।
हम तो आज भी जिंदा है तेरे बेगैर,
इससे बड़ी सज़ा क्या होगी।

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5 FEB 2022 AT 17:40

इतिहास के पन्नों में भी तेरी झलक है।
धोखेबाजी तो सदियों से एक सबक है।
सोचता हूँ, फिर तू क्यों ग़लत है?

तेरी ईमानदारी पे मुझे शक नही।
अब जब तुझे मोहब्बत नही तो तू गलत नही।
सही रहा तेरा सामने मुकरना,
इस कशमकश से अब हम निकल गए
कि तुझे मोहब्बत है की नही।

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5 FEB 2022 AT 17:31

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि
जीवन कितना कठिन और लंबा होगा,
जब आपने अपने भीतर
ईश्वर (प्रेम) की स्थापना की है।
आप अपना खुद का गाना गाएंगे
और अंधेरे समय में भी आगे देखेंगे।
वास्तव में तुम प्रकाश बन जाते हो।
यही उनकी (महादेव) सुखद यात्रा
का वास्तविक साधन है।

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31 JAN 2022 AT 23:38

मेरे दिल, मेरे मुसाफ़िर।
चल आज तुझे दुनिया की सैर कराऊ।
जो शख़्स मेरी ज़िंदगी से,
आ उससे रूबरू कराऊ।

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31 JAN 2022 AT 1:37

न जाने कितनी बातें कहनी है तुमसे
इन गहरी रातों में।
बस तुम रहो और मैं रहू
इन सर्दी की रातों में।

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31 JAN 2022 AT 1:33

कभी कभी मन करता है खुदसे कहू कि
कोई हक़ नही तुम्हे रोने का।
फिर कभी ये भी ख्याल आता है कि
कोई हक़ ही नही मुझे जीने का।

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23 JAN 2022 AT 15:56

उन्हें गुमान है अपनी फितरत पे।
मुझे ही छोड़ने का मुझे मशवरा देते हैं।
अब शहर में फूल नही खिलेंगे।
जफ़ा के मौसम में तो ख़ूनगखार रहते हैं।

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23 JAN 2022 AT 15:55

एक ग़ज़ल थी।
बहुत बुरी थी।
देखो उसने मुझे रुला दिया।

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23 JAN 2022 AT 0:07

वो दौर याद तो नहीं है।

पर पता ही नही कि कब मैने
अकेलेपन और एकांत की
बारीक रेखा को पार कर दिया?
कब जा कर मैं खुद से ही टकरा पड़ा?
कब ख़ुद से दोस्ती कर के, खुद को पास में बैठाया?
और कब एक हँसी से खुद को मुकम्बल कर बैठा?

शायद ये वही दौर हैं, जब तू मुझको खो बैठा।



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3 JAN 2022 AT 22:22

मुझे कहाँ खबर थी कि मेरे पंख भी है।

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