इन तकलीफों से तकल्लुफ कैसा उज्वल
चराग फड़फड़ाते है मगर जलते है-
स्वार्थियों का हैं शोर यहीं †
देखा है ऐसा शोर कहीं †
देख रहे हैं लोग खामोश खड़े †
और पड़ी है लाश कहीं †
तरक्कियों की खुशियां मना तो रहे है †
मगर गुम हो गई है इंसानियत कहीं †
पन्नों को यू भरा तेरी यादों से †
अब यादें उन्ही में गुम है कहीं †-
कितनी सारी बातें करती हो, अख़बार हो क्या ||
कितने सारे वादें करती हो, सरकार हो क्या ||
कभी सच, कभी झूठ, कभी हां, कभी ना, ||
बोहत जल्दी पलट जाते हो, अय्यार हो क्या ||
कभी मान जाते हो, कभी मना कर देते हो ||
भाव चढ़ता - उतरता रहता है, बाज़ार हो क्या ||
सिर्फ़ देखते रहते हो, ज़रा हाथ भी लगाया करो ||
जान हो कर भी कतार में खड़े हो,अश्जार हो क्या ||
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कितनी सारी बातें करती हो, अख़बार हो क्या ||
कितने सारे वादें करती हो, सरकार हो क्या ||
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कितनी सारी बातें करती हो, अख़बार हो क्या ||
कितने सारे वादें करती हो, सरकार हो क्या ||
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इश्क़ नहीं हमसे, तो ना कहिए ना।।
हमनें नहीं रोका हैं, आप, जाईए ना।।
कैसा धुआ है उठता ही जा रहा है।।
आग लगानी है आग लगाईए ना।।
इतना आसान नहीं जितना लगता है।।
आसान लगता है तो फिर करिए ना।।
जस्बात क्या है यक्लखत बदल जाते है
रोने का समां है तो रोईए ना।।
जितना है उतने में खुश रहने की नसीहत देते हो।।
आप खुश हो क्या, बताईए ना।।
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इश्क़ नहीं हमसे, तो ना कहिए ना।।
हमनें नहीं रोका हैं, आप, जाईए ना।।-
उरुज है या जवाल, ये तो अंत ही बतायेगा।।
कोई नई शुरुआत कर रहा है, मगर क्यू।।-
सारे पन्ने जल गए, किताबों ने शिकस्त खाई।।
कोई कलम को तलवार कह रहा है, मगर क्यू।।-
तितलियां और उनके रंग पसंद है तुमको।।
और तुम उन्हें छूना चाहते हो, मगर क्यू।।-