विद्या के मंदिर में,
ये कैसा स्वांग, रचवाया जाता है;
लोग भुखे मरते हैं,
और यहाँ केक से, होली मनाया जाता है;
जन्मदिवस के नाम पर;
धुल जमी तस्वीर को, चमकाया जाता है
उन्हें फूलों का हार, पहनाया जाता है
वो सख्श उसी हार के पीछे
अपना चेहरा छुपाता है
क्योंकि, महफ़िल में इंसान अपने अंदर के
हैवानियत का नंगा नाच दिखाता है
चेहरे पर लगा केक देख
आईना भी शर्माता है
क्योंकि ये ढोंग, ना जाने कब
एक गंभीर बिमारी बन जाता है
इससे कोई कहाँ बच पाता है
यह तो, पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ते जाता है
-