कुछ तेरे आंखों में भी सपने थे,
कुछ तेरे चेहरे पर घबराहट,
कुछ किस्से थे आवाज़ में,
कुछ जेहन में हारी हुई चाहत,
कुछ दुःख छिपाने वाली मुस्कान थी,
कुछ ना दिख सकने वाली थकान थी,
हर रूप में तू मुझ जैसा ही तो था,
हर बात में मैं तुझ जैसा कहीं,
क्या क्या ना सोचा तेरे बारे में,
पर सोचा कभी नही, मैं भी तो इंसान हूं,
पहचान तेरी भी इंसान की ।-
किसी दिन हम आपके शहर आएंगे,
या तुम मेरे शहर आना,
कही गंगा किनारे,
गुमटी पर गाड़ी रोक कर,
गरमा गर्म चाय पियेंगे,
तुम मुझे बताना की तुम्हारे शहर की चाय की क्या खासियत है,
और मैं तुमको अपने शहर की चाय से मुखातिब करवाऊंगा,
चाय की एक एक चुस्की पर,
मैं और तुम,
अपने यादों के पन्नो में, नए अध्याय लिखेंगे,
और उन्हे सहेज कर, संकलित कर,
एक दूसरे के साथ, मुलाकात और बात का उपन्यास गढ़ेंगे।-
अल्फाजों से कही ज्यादा,
बयां करती है तुम्हारी एक तस्वीर,
जिसके सामने आते,
उभर आती यादों की झड़ी,
वो गुजरे पल, वो हसीन लम्हे,
झरने की आवाज, तुम्हारी खिलखिलाती हंसी,
वो धूप और बादल की लुक्का छुपी,
और हवा में उलझी तुम्हारी जुल्फें शबनमी,
वो तुम्हारी मुस्कान, और हमारी अदावत,
और सैकडो खयालों की सौगात,
सब कुछ जैसे मैं फिर से जी उठता हूं ।-
तेरे नैनो में मैं “फ़िराक” को देखा,
और तेरी जुल्फों की चमक में”मजरूह” की रेखा,
तेरे कदमों में मुझे “तुलसी” की चौपाई दिखी,
तेरे साथ मुझे “निराला” की सच्चाई मिली,
क्या बताऊं मैं तुझको,
तू कैसी लगती मुझको,
कभी तू किसी शायर की ग़ज़ल लगी,
कभी किसी लेखक का बुना महल लगी,
लगी कभी किसी उपन्यास सी,
कभी कविता के मदहोश सार सी-
कभी “मजाज़” के इंकलाब सी
या “इब्ने इंशा” की शबनमी किताब सी,
कभी तुझमें मुझे “फैज” का क्रोध नजर आता है,
कभी तुझमें “साहिर” मदहोश नजर आता है,
तुझमें कुछ “मंटो” की बगावत है,
तुझमें कुछ “नज़ीर” की अदावत है,
“दुष्यंत” की दुनिया तुझमें है,
और “कबीर” का गीत तुझसे है,
लगती तू “जयशंकर” का प्यार भी है,
और तू “मुक्तिबोध” का संसार भी है,
तेरी हसीं में जैसे मैंने “गालिब” को पाया,
और तेरा उरूज लगे, “बच्चन” का साया,
-
कहां हो सरकार?
अखबार में इश्तहार छपा है
कई दिनों का गला एक कंकाल मिला है
खोज बीन बड़े दिनों से जारी,
की पता पड़े की इसका कौन जिला है,
डॉक्टर की राय में, कत्ल हुआ है इसका,
पर आखिर यह अंजाम किस बात का सिला है,
सुना है पास उसके,
फटा - चिथड़ा एक संविधान मिला हैं,
एक पुरानी लाल बत्ती उसके जेब से,
और मालूम पड़ा कि माथे पर अशोक सिला है,
पूछा लोगो से आखिर कौन है वो,
तोह भैया, अभी तो सभी जीवन में गिला हैं,
कोई इंजेक्शन, तोह कोई ऑक्सीजन,
तोह कोई लकड़ी की लाइन में पिला है,
वैसे कई दिनों से सरकार नदारद,
शहर, कस्बा, गांव और कूचा, महकमा - बिला है,
कही यह कंकाल, उसका तो नही मिला है?-
खाली है रास्ते,
सुनसान नुक्कड़ के बाज़ार है,
जो शहर कभी सोया नही करते थे,
उनकी आज दोपहर भी सुनसान है।
क्या देश और क्या विदेश,
चारो तरफ सिर्फ यह वायरस अनजान है,
मक्का, जेरूसलम, या हो वैटिकन,
सबके आंगन विरान है।
बंद है दफ्तर के दरवाज़े,
मंदिरो के बंद कपाट है,
सिनेमा और होटल की क्या मजाल,
जब न्यायलयों के प्रांगण भी सपाट है।
"पार्टी एनिमल" में बेचैनी है पल रही,
दिहाड़ी अपनी रोटी के लिए परेशान है,
थम गया दुनिया का अर्थ जगत,
दृश्य ऐसा, की भगवान भी हैरान है।-
हम उनके चाखाचौंध में कुछ यूं मसरूफ हुए,
की लफ्जो ने इज़हारो से किनारा कर लिया,
हम अनजान कि वो हमारे
बोल का इंतजार कर रहे थे,
यहां हमने उनके इश्तेहारों से गुजरा कर लिया।-
खाली है रास्ते,
सुनसान नुक्कड़ के बाज़ार है,
जो शहर कभी सोया नही करते थे,
उनकी आज दोपहर भी सुनसान है।
क्या देश और क्या विदेश,
चारो तरफ सिर्फ यह वायरस अनजान है,
मक्का, जेरूसलम, या हो वैटिकन,
सबके आंगन विरान है।
बंद है दफ्तर के दरवाज़े,
मंदिरो के बंद कपाट है,
सिनेमा और होटल की क्या मजाल,
जब न्यायलयों के प्रांगण भी सपाट है।
"पार्टी एनिमल" में बेचैनी है पल रही,
दिहाड़ी अपनी रोटी के लिए परेशान है,
थम गया दुनिया का अर्थ जगत,
दृश्य ऐसा, की भगवान भी हैरान है।-
कहते है वो की तुम हर - दिल अजीज हो,
क्या मायने इन लफ्जो के, जब तुम्हारे इरादे ही बतमीज हो
फर्क क्या ही पड़ जाना है तुम्हारी नियत और इरादों को,
पहनी चाहे जीन्स या हमने सलवार कमीज़ हो।-