उलझे मायनों में सुलझ रही है जिंदगी
गैरो से बेवजह बनने जो लगी है बंदगी-
IIT Madras '25
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वक़्त की तकल्लुफ़ हैं
या ख्वाबो की मोहताज तू
ऐ ज़िन्दगी ये मायने हैं तेरे
या बेखबर बिखरी आरज़ू— % &-
बेवक़्त वक़्त जाया करू, अपना
वक़्त से वक़्त की तकल्लुफ में
फिर क्यों खौफ उस वक़्त का
जो बह रहा पराये-अपने आँगन में-
सजदा मैं अदा करू
सजदे में मीट जाऊँ
एक खूबसूरत फूल हूँ
मरमीटना फूल की आरज़ू-
तुझे मलाल-ऐ-इश्क़ लिखू
या सवाल-ऐ-ज़िन्दगी
किस हक़ से तुझे लिखू
पूछे मुझे जज़्बाती बंदगी-
क्यू न जाने हज़ारो सवाल करते है हम मोहब्बत से
आख़िर वक़्त की तख़लीक़ ही तो है, सुलझ जायगी-
I shall be here, when darkness come over
I shall be here, when you feel everything is over
I shall be here, when you hope everything will work out
I shall always be here even when not called out-
ऐ चाँद तू होगा न मेरे साथ,
जब चाँदनी भी साथ छोड़ चुकी होगी
जब आकाश भी अंधेरे से वीरान होगा
तब तू होगा न साथ ?-
युवानी के दर पर खड़ा
पूछ रहा हूँ मैं खुदसे
क्या है मेरे सपने संजोये
और क्या है मेरे अपने-सपने
शीशमहल सा सजाया था जिन्हें
अंधेरे की परछाई बने
आंखों में सवारा करते थे जिन्हें
अब मयस्सर नही अपने सपने
पोंछ कर आँसू यादो के
आंखों में आशाये लिए
उम्र के हर दरवाज़े पर
छोड़ चला चंद अपने सपने
बचपन ने हाथ छोड़ा
ज़िम्मेदारीया हाथ कसने लगी
उनके सपने भी दिखने लगे
जो पूरे करते थे अपने सपने
(पूरी कविता कैप्शन में)-
आशियाने तलाशते रहे
तुम इस रैन बसेरे मैं
आबाद हुए मन बहुत
दिल वीरान होते रहे-