मनुष जनम अनमोल रे::: ! इसे, माटी में ना रोल रे::: !
अब तो, मिला है, फिर न, मिलेगा ! कभी नहिं !३
निसदिन हरि को, ध्याया कर::!२ गीत प्रभु के गाया कर::!२
शाम सबेरे, बैठके, बन्दे, हरि का ध्यान लगाया कर:::!२
* नहिं लगता कुछ मोल रे, इसे माटी में ना रोल रे, अब तो ० मनुष जनम०

तू बुलबुला है पानी का !२ मत कर जोर जवानी का !२
नेक कमाई कर ले बन्दे, पता नहीं जिन्दगानी का !२
* सबसे मीठा बोल रे, इसे माटी में ना रोल रे !२ अब तो ० मनुष जनम०

बतलब का संसा::र, है !२ इसका‌ नहिं ऐतबा::र, है !२
सँभल-सँभलकर, कदमरखो ये, फूलनहीं अंगार है !२
* मन की आँखें खोल रे, इसे माटी में ना रोल रे !२ अब तो० मनुष जनम०

सतगुरु महिमा अपार है !२ ज्ञान का ये, भण्डार हैं !२
जो भी इनकी, शरण में जाए, करते बेड़ा पा::र, हैं !२
* है सतसंग, अनमोल रे, इसे माटी में ना रोल रे !२ अब तो० मनुष जनम०
संकलनकर्ता--उदय प्रताप जनार्दन सिंह


- उदय प्रताप जनार्दन सिंह